मौन से मौन का मिलन

मौन से मौन का फिर मिलन हो गया।
हम मिलेंगे वहीं फिर सपन हो गया।।

राधा स्वासों में है वो हृदय की गति।
कृष्ण का फिर यहां आगमन हो गया।।

मीरा ऐसी रमी प्रेम मय हो गई।
प्रेम का प्रेम से फिर मिलन हो गया।।

एक निमंत्रण जो नैनो से नैनो का है।
एक विकलता धरा से गगन को जो है।।

कुछ पलों के लिए मुझको ऐसा लगा।
ये निमंत्रण हमारा सफल हो गया।।

इस हृदय की धरा में आये जो आये हो तुम।
अब व्यथा का मेरी आंकलन हो गया।।

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नेहा शुक्ला (श्रुति)
चंडीगढ़