अपनी तदबीर को सरशार करें तो कैसे,
जानता हूँ कि उधर मौत का सन्नाटा है,
हम ने पत्थर के ख़ुदा अपने हुनर से हैं गढ़े,
बेंच डाले सभी अल्फ़ाज़ को बाज़ारों में,
नातवां जिस्म है ‘मेहदी’ का नक़ाहत भी है,
मेहदी अब्बास रिज़वी
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