आज है माँ चंद्रघंटा की पूजा! इससे मिलती है मन की शांति! 

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
माँ भगवती की तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा के नाम से जानी जाती हैं. नवरात्रि के तीसरे दिन इन्हीं की पूजा का विधान है. देवी पुराण में माँ चंद्रघंटा को शांति एवं कल्याण का प्रतीक बताया गया है. माँ के मस्तष्क पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र अंकित होता है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा का नाम से जाना जाता है. इनकी संपूर्ण काया में स्वर्ण-सी दमक है और वाहन है सिंह. दस भुजाओंवाली माँ चंद्रघंटा के हाथों में कमल , धनुष , बाण , कमण्डल , तलवार , त्रिशूल और गदा विद्यमान हैं , गले में श्वेत पुष्प की माला और सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है. पुराणों के अनुसार माँ चंद्रघंटा ने घंटे की नाद (आवाज) से ही लाखों असुरों का संहार कर दिया था.

ऐसे करें माँ चंद्रघंटा की पूजा…
देवी चंद्रघंटा की पूजा अकेले नहीं करनी चाहिए. इनके साथ भगवान शिव की भी संयुक्त पूजा होनी चाहिए, अन्यथ संपूर्ण पुण्य की प्राप्ति पर संदेह हो सकता है. सर्वप्रथम चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इस पर गंगाजल का छिड़काव कर इसे शुद्ध करें. इस पर भगवान शिव और मां चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें. अब इस चौकी पर चांदी , पीपल , तांबा अथवा मिट्टी का कलश रखें. इसमें जल , सिक्के , सुपारी डालकर आम्र पल्लव रखें. इस पर लाल कपड़े में नारियल लपेटकर रखें. कलश के सामने दीप प्रज्जवलित करें. माँ चंद्रघंटा एवं भगवान शिव का स्मरण करते हुए उनका आह्वान मंत्र पढ़े.

या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’

का ज्यादा से ज्यादा बार जाप करें. इससे मन को शांति मिलती है. इसके पश्चात प्रतिमा के सामने धूप प्रज्जवलित कर सप्तशती मंत्र का जाप करते हुए षोडशोपचार विधि से पूजा करें. भगवान शिव एवं माँ चंद्रघंटा को वस्त्र, सौभाग्य-सूत्र , चंदन , रोली , दूर्वा , हल्दी सिंदूर , बिल्व-पत्र , इत्र , धूप , नैवेद्य आदि अर्पित करें. पूजा पूरी होने के पश्चात प्रसाद को वितरित कर दें.

माँ चंद्रघंटा का प्रकाट्य पौराणिक कथा…
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक महिषासुर ने त्रैलोकेश्वर से यह वरदान हासिल कर लिया कि उसे ना देवता मार सकेंगे ना मनुष्य. इससे वह घमंड से चूर पृथ्वी पर आतंक फैलाने लगा. इसके बाद उसने स्वर्गलोक पर कब्जा करने के लिए देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवतागण रक्षा की गुहार लगाते भगवान शिव, श्रीहरि, ब्रह्माजी के पास पहुंचे. देवताओं की बातें सुनकर तीनों को ही क्रोध आ गया. क्रोधित त्रिदेव के मुख से एक ऊर्जा उत्पन्न हुई, यह ऊर्जा देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं.

शक्ति की देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए जो हुंकार भरी तो पृथ्वी हिल गई. भगवान शिव ने अपना त्रिशूल और श्रीहरि ने चक्र प्रदान किया. इसके बाद देवराज इंद्र ने देवी को एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, सवारी के लिए सिंह दिया. दुर्गाजी ने महिषासुर का वध करने माँ चंद्रघंटा के रूप में अवतार लिया. सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंचीं. मां चंद्रघंटा का यह रूप देखकर महिषासुर को आभास हो गया कि उसका काल आ गया है. महिषासुर ने मां चंद्रघंटा पर हमला बोल दिया. अंततः मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर पृथ्वी से राक्षसी आतंक को समाप्त किया.