कंजूसी और फिजूल के खर्चे हैं दरिद्रता के संकेत

शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

यह कहानी इस सार पर आधारित है। कि धन का महत्व बहुत ज्यादा है। और इसका संतुलन के साथ इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है। तो आइए पढ़ते हैं यह प्रेरक कहानी। एक व्यक्ति था जिसके दो बेटे थे। दोनों का ही स्वभाव एक-दूसरे से अलग था। जहां एक बेटा बेहद कंजूस था। वहीं, दूसरा बहुत फिजूलखर्ची करता था। उनका पिता अपने दोनों ही बेटों से बेहद दुखी था। पिता ने कई बार कोशिश की कि वो उन्हें समझा सकते लेकिन उनका स्वभाव जैसा था वैसा ही रहा। फिर एक दिन पिता को पता चला कि उनके गांव में एक महात्मा आए हैं जो बेहद ही सिद्ध हैं। वो सिद्ध महात्मा के पास पहुंचे और उन्हें लगा कि वो उनके पुत्रों को समझा सके। पिता ने महात्मा को सब बताया। महात्मा ने कहा कि वो अपने बेटों को लेकर उसके पास आए । वो उनसे बात करेंगे। अगले ही दिन वो अपने बेटों को लेकर महात्मा के पास पहुंचा । उसने अपने दोनों बेटों को महात्मा के पास बिठा दिया। महात्मा ने अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियां बंद की और उन्हें दिखाते हुए पूछा कि अगर मेरे हाथ ऐसे हो जाएं तो क्या होगा। दोनों उत्तर सुनकर महात्मा गंभीर हो गए। उन्होंने दोनों को समझाते हुए कहा कि अपनी मुठ्ठी सदा बंद रखना या सदा खुली रखना, कोढ़ ही है। अगर मुठ्ठी बंद रखी जाए तो धनवान होते हुए भी गरीब हो जाओगे। वहीं, अगर मुठ्ठी सदा खुली रखोगे तो कितने भी धनवान को निर्धन हो जाओगे। इसलिए कभी मुठ्ठी बंद तो कभी खुली रखनी चाहिए। इससे जीवन में संतुलन बना रहेगा। महात्मा की बात पुत्रों का समझ आ गई। उन्होंने धन पर नियंत्रण किया और संतुलन बनाया।