कर्नाटक: गांव के एक कुँवे में खुदाई के दौरान मिले, टीपू सुल्तान के एक हजार से ज्यादा रॉकेट

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कर्नाटक के शिवमोगा जिले में खुदाई के दौरान टीपू सुल्तान के समय के करीब 1000 युद्ध रॉकेट मिले हैं। इनका इस्तेमाल दुश्मन के खात्मे के लिए किया जाता था। बताया जा रहा है कि जिले के ही एक गांव के सूखे कुंए में तलछट की खुदाई चल रही थी जिस वक्त यह रॉकेट मिले। इनकी जांच करने पर पता चला कि ये 18वीं शाताब्दी के हैं। इनका इस्तेमाल टीपू सुल्तान के शासन काल के दौरान किया जाता था। टीपू उस वक्त मैसूर का शासक था।

पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बिगदानुरु में सुपारी के खेत में एक पुराने कुंए की खुदाई के दौरान मजदूरों को ये रॉकेट मिले हैं। यह रॉकेट बेलनाकार के हैं और लोहे से बने हैं। वहीं पुरातत्व विभाग के आयुक्त वेंकटेश ने बताया कि आज से करीब 6 साल पहले भी यहीं से टीपू सुल्तान के रॉकेट मिले थे। इन रॉकेट में पोटेशियम नाइट्रेट, चारकोल और मैग्नीशियम पाउडर भरा हुआ था। रॉकेट तोपखाने का उपयोग करने में अग्रणी टीपू रॉकेट को तैनात करने के लिए प्रयुक्त ब्रिटिश सेनाओं को अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोकने के लिए इस्तेमाल करते थे।

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इन सभी रॉकेट को ‘शिवप्पा नायक म्यूजियम’ में रखा जाएगा। बता दें कि इससे पहले 2012 में भी शिवमोगा में ही 160 रॉकेट मिले थे। इसके अलावा टीपू सुल्तान के समय के कुछ रॉकेट लंदन म्यूजियम में भी रखे गए हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, शिवमोगा पहले मैसूर रियासत का हिस्सा था। तब 1750 से 99 के बीच टीपू और ब्रिटिश सेना के बीच कई युद्ध लड़े गए। तब टीपू ने दुश्मनों पर इन्हीं रॉकेट का इस्तेमाल किया था और जीत हासिल की थी।

गौरतलब है कि टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश सेना से मुकाबले के लिए आधुनिक युद्ध तकनीकों का इस्तेमाल किया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लगातार जीत हासिल करने के बाद साल 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में इस टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी। उन्हें नेपोलियन वार में इस्तेमाल होने वाले ब्रिटिश कांग्रेस रॉकेट का एक प्रोटोटाइप, मैसूरियन रॉकेट नामक एक प्रारंभिक स्वदेशी रॉकेट विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।