जीवन के प्रति हमारा जैसा विचार होता है , हम वैसे ही बनते जाते हैं

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
जीवन के प्रति हमारा जैसा विचार या दृष्टिकोण होता है, हम वैसे ही बनते जाते हैं। हम अच्छे हैं , स्वस्थ हैं , ऐसा सोचने से तन-मन स्वस्थ रहता है। इसके विपरीत यदि यह सोचने लगेंगे कि हम बीमार हैं , कमजोर हैं तो सचमुच बीमार और अशक्त महसूस करने लगेंगे। इसी प्रकार हम गरीब हैं , हमारे पास पैसा , धन-ऐश्वर्य और वैभव नहीं है , ऐसा सोचने से ही हमारे जीवन में दरिद्रता बढ़ती चली जाती है। हम सचमुच श्रीहीन हो जाते हैं।

यहां एक बात सदैव स्मरण रखी जाए कि लक्ष्मी कभी दरिद्र , आलसी और अकर्मण्य व्यक्ति के पास नहीं आती। वह आती है सक्रिय, स्वस्थ व उद्यमी एवं कर्मशील व्यक्ति के पास। नि:संदेह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख दोनों आते हैं, परंतु व्यक्ति चाहे तो सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ दुख के समय को भी सहजता के साथ व्यतीत कर सकता है।

दूसरों की सुख-समृद्धि देखकर कभी कुंठा न पालें , अपितु उस व्यक्ति की प्रगति के कारणों को समझें। उसके सद्गुणों को अपनाएं और स्वयं का विकास करें। किसी न किसी चीज का अभाव हर व्यक्ति के जीवन में होता है तो उससे दुखी या निराश न हों। इससे तन-मन दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ यही सोचें कि जो हमें मिला है , उतने से तो दुनिया के तमाम अन्य लोग वंचित हैं। हमसे भी अधिक दुखी और परेशान तमाम लोग इस संसार में हैं।

सकारात्मक सोच से शरीर में आवश्यक ऊर्जा बढ़ती है और नकारात्मक सोच से ऊर्जा नष्ट होती है। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम सर्वशक्तिमान, दयालु और कृपानिधान ईश्वर की सर्वोत्तम कृति हैं। ईश्वर ने हमें संसार में अपना उत्कृष्ट प्रदर्शित करने के लिए ही बनाया है। उसने हमें योग्यता, प्रतिभा, ज्ञान, बुद्धि, विवेक, विचार शक्ति और अंतर्दृष्टि जैसे अलौकिक एवं अनुपम गुणों से उपकृत किया है। इन अमूल्य गुणों को आत्मसात कर हमें जीवन को संवारने के उपक्रम में उन्मुख होना चाहिए।