दुनिया में घटती जनसंख्या बनी चिंता: आबादी बढ़ानी हो, तो बच्चों के पालन-पोषण को आसान बनाना होगा

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
अमेरिका और चीन में जनसंख्या वृद्धि की दर लगातार धीमी हो रही है। लेकिन जानकारों कहना है कि इन दोनों में कोई चिंता की बात नहीं है। इसलिए क्योंकि जनसंख्या के मामले में ऐसा कोई बिंदु नहीं होता, जहां से वापस लौटना संभव ना हो। जानकारों के मुताबिक अगर सरकारें जनसंख्या दर गिरने के बुनियादी कारणों पर ध्यान दें, तो समस्या को आसानी से हल किया जा सकता है। इस सिलसिले में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है , कि सरकारों को बच्चों के पालन-पोषण की लागत घटाने के इंतजाम करने चाहिए।

जनसंख्या बढ़ने या घटने का अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है। आबादी में कामकाजी उम्र वाले लोगों का अनुपात घटने का मतलब कम उत्पादक आबादी का मौजूद रहना होता है। जबकि बुजुर्ग लोगों की संख्या कमाने वालों से अधिक होने पर सामाजिक सुरक्षा पर सरकारों को अधिक खर्च करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र ने भविष्यवाणी की है कि , अगले 30 वर्षों में दुनिया की आबादी बढ़ कर 9 अरब 70 करोड़ हो जाएगी। 2019 में ये आबादी सात अरब 70 करोड़ थी।

अगले तीन दशकों में जो आबादी बढ़ेगी, उसकी आधी संख्या सिर्फ नौ देशों में होगी। चीन उन 55 देशों में होगा, जहां आबादी कम से कम आज की तुलना में एक फीसदी घट जाएगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में इस समय प्रजनन उम्र वाले लोगों की संख्या, एक पीढ़ी की ऐसी संख्या से ज्यादा है। इसलिए अगर प्रजनन दर में अचानक बड़ी गिरावट आ जाए, तब भी नवजात शिशुओं की संख्या उतनी अधिक होगी, जितनी पिछले कई दशकों में नहीं रही।

सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए कि लोग क्या चाहते हैं। लोग अपने देश में किस हद तक आव्रजन चाहते हैं। लोग किस उम्र तक जीना चाहते हैं।’ उन्होंने ध्यान दिलाया कि फिलहाल अमेरिका जनसंख्या संबंधी तीनों कसौटियों पर पिछड़ रहा है। ये कसौटियां हैं- आव्रजन, जीवन प्रत्याशा, और प्रजनन दर। ‘जब सामान्य इच्छाएं पूरी न हो सकें, तो ये इस बात का संकेत होता है कि समाज में समस्या है।

ओर अभी भी अमेरिकी ऐसे लोग हैं जो अभी भी कई बच्चों का माता-पिता बनना चाहते हैं। लेकिन बच्चों के पालन-पोषण में होने वाले खर्च को लेकर वे चिंतित रहते हैं। इसकी वजह देश में स्टूडेंट लोन के जरिए पढ़ाई का बढ़ता चलन, पारिवारिक अवकाश सुनिश्चित करने वाली नीति का अभाव और करियर में आने वाली रुकावटें हैं। जानकारों के मुताबिक इन्हीं कारणों से हाल में चीन में भी जनसंख्या में गिरावट आई है। इसके अलावा चीन में तकरीबन चार दशक तक चलाई गई वन चाइल्ड पॉलिसी के कारण लैंगिक असंतुलन (लड़के-लड़कियों की संख्या में अंतर) भी बढ़ गया है।

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि एक तरफ चीन में अधिक बच्चे पैदा करने के लिए अब लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उसी समय चीन सरकार ने रिटायरमेंट की उम्र भी बढ़ा दी है। इससे बच्चों के पालन-पोषण में दिक्कत बढ़ेगी, क्योंकि जिन परिवारों में पत्नी-पत्नी दोनों नौकरी करते हों, उनमें आमतौर पर रिटायर लोग ही छोटे बच्चों की देखभाल करते हैं। जनसंख्या विशेषज्ञों ने कहा है कि जो देश सचमुच अपनी आबादी बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें उन कारणों को दूर करना चाहिए, जिनकी वजह से लोग ज्यादा बच्चे नहीं पैदा करना चाहते।