देश में छात्र कम दिखा रहे हैं गणित के अध्यन में रूचि 

शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

आज पूरे विश्व में जब भी गणित की या गणित में योगदान की बात की जाती है तब भारत के श्रीनिवास रामानुजन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। विश्व स्तर पर गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अनुकरणीय है। प्राचीन समय से ही भारत गणितज्ञों की सरजमीं रही है। यहां आर्यभट्ट, भास्कर, भास्कर-द्वितीय और माधव सहित कई मशहूर गणितज्ञ पैदा हुए।

आर्यभट्ट ने ही दुनिया को दशमलव का महत्व समझाया था। इनके बाद श्रीनिवास रामानुजन, चंद्रशेखर सुब्रमण्यम और हरीश चंद्र जैसे गणितज्ञ विश्व पटल पर उभरकर सामने आए, लेकिन मौजूदा समय में विश्व में गणित के मामलों में भारत काफी निचले पायदान पर पहुंच गया है।श्रीनिवास रामानुजन के जीवन चरित्र से हमारी शिक्षा व्यवस्था का खोखलापन भी उजागर होता है। 1903 में रामानुजन ने दसवीं की परीक्षा पास की। समय के साथ-साथ उनकी गणित के प्रति रुचि बढ़ती ही गई।

फलस्वरूप 12वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। दिसंबर 1906 में उन्होंने स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में 12वीं की परीक्षा पास करने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो सके। इसके बाद रामानुजन ने पढ़ाई छोड़ दी। अपने अध्ययन के बल पर रामानुजन कभी भी डिग्री प्राप्त नहीं कर सके, लेकिन उनके कार्यो और योग्यता को देखते हुए ब्रिटेन ने उन्हें बीए की मानद उपाधि दी और बाद में उन्हें पीएचडी की भी उपाधि दी।

यहां एक सवाल उठता है कि क्या यह भारत में संभव था या है, क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था ने तो रामानुजन को हर तरह से नकार ही दिया था।रामानुजन की गणितीय प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के लगभग 93 वर्ष व्यतीत होने जाने के बाद भी उनकी बहुत सी प्रमेय अनसुलझी बनी हुई हैं। उनकी इस विलक्षण प्रतिभा के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत सरकार पिछले कुछ वर्षो से उनके जन्म दिवस 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाती है। इसका उद्देश्य देश में गणित के विकास को प्रोत्साहित करना है।

वास्तव में देश में छात्र उच्चस्तरीय गणित के अध्ययन में बहुत कम ही रुचि दिखाते हैं। फलस्वरूप यहां गणित का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। जबकि आज देश को बड़ी संख्या में गणितज्ञों की जरूरत है। इसके लिए हमें विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक पद्धति में सुधार लाना होगा। प्रतिभाशाली छात्रों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने होंगे, ताकि उन्हें रामानुजन की तरह कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। देश एक बार फिर से गणित के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर बने इसके लिए युवा अथक प्रयास करें। यही रामानुजन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।