दौसा जिला स्थापना दिवस के उत्सव पर लगा कोरोना ग्रहण, लॉकडाउन से बाजार गली सब सूने

रिपोर्ट :-ब्यूरो हेड(राहुल भारद्वाज)
दौसा :- दौसा जिले की 30 वीं वर्षगांठ के अवसर पर दौसा के इतिहास में यह पहला अवसर था जब कोरोना महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन के कारण जिला मुख्यालय पर स्थित मुख्य बाजार ,रेलवे स्टेशन,बस स्टेण्ड, राष्ट्रीय राजमार्ग, जिला कलेक्ट्रेट,जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय सहित अधिकांश सरकारी कार्यालय, मन्दिर,मस्जिद, होटल,व पर्यटन स्थल पर सब जगह पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ रहा ।कोरोना नामक इस महामारी ने पूरी मानव सभ्यता को झकझोर किया हुआ है।दौसा जिला स्थापना दिवस के उत्सव का अवसर भी इस महामारी की भेंट चढ़ गया ।

 

दौसा जिले का इतिहास :-

वैसे इस जिले का इतिहास प्राचीनकालीन है, परन्तु आधुनिक भारत में जिले के रूप में राजस्थान राज्य के 29वें जिले के रूप में 10 अप्रेल 1991 को मान्यता दी गई। तब जिले में दौसा, बसवा, सिकराय व लालसोट तहसील थी। दौसा को जयपुर जिले से अलग कर के जिला बनाया गया था। 15 अगस्त 1992 को सवाईमाधोपुर से अलग कर महुवा को भी इसमें शामिल कर दिया गया। समय के साथ-साथ इसका विस्तार होता गया। जिले में दौसा, लालसोट, महुवा, सिकराय,बांदीकुई, नांगल राजावतान व रामगढ़ पचवारा उपखण्ड मुख्यालय स्थापित हैं। 50 से अधिक सरकारी विभागों के दफ्तर हैं। 9 तहसील व 6 पंचायत समितियां हैं। जिले से एक लोकसभा व दो राज्यसभा में सांसद हैं। स्थानीय व मूल निवासी सब मिलकर 8 विधायक हैं। देश से लेकर राजस्थान की राजनीति में दौसा का डंका हमेशा बजता रहता है ।यँहा की मिट्टी में पले बढ़े व चुनाव लड़े कई केंद्रीय मंत्री,मुख्यमंत्री व राज्यपाल आदि प्रमुख शख्सियत ने भारत की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है।

 

दौसा का हृदय स्थल है गांधी तिराहा जंहा से जाता है हर तरफ का रास्ता :-

दौसा शहर के मध्य में स्थित गांधी तिराहा को दौसा का हृदय स्थल कहा जाता है जंहा से से जिले में किसी भी तरफ जा सकते हैं। प्रतिमा के पीछे लालसोट रोड है जो सवाईमाधोपुर जिले को जोड़ती है। दाईं ओर से मार्ग सिकराय, बांदीकुई व महुवा के अलावा अलवर, भरतपुर जिले में जाता है। बाएं तरफ का रास्ता राजधानी जयपुर को जाता है। दौसा से नेशनल हाइवे के अलावा जयपुर-दिल्ली व जयपुर-भरतपुर रेल मार्ग भी निकल रहा है।

 

ऐतिहासिक महत्व :-

दौसा ढूंढार राज्य व कच्छवाह वंश के राजपूतों की राजधानी रहा। चौहानो और बडग़ुर्जरों ने यहां राज्य किया है। अरावली पर्वतमाला की तलहटी में स्थित किला शत्रुओं के लिए अभेध था। सूप (छाज) के आकार में बना ये किला तीन तरफ विशाल दुर्ग व पीछे की तरफ पहाड़ी से घिरा है। सुरक्षा की दृष्टि से किले में प्रवेश के लिए तीन बड़े व मजबूत दरवाजे थे। विषम परिस्थितियों में किले में प्रवेश के लिए सामने की तरफ एक छोटा गेट बनाया हुआ है, जिसे हाथी पोल कहा जाता था।

 

आभानेरी की चांद बावड़ी से बनी विश्व में पहचान, मेहंदीपुर बालाजी की भी महिमा है अपार :-

जिले के बांदीकुई में स्थित आभानेरी की चांदबावड़ी से जिले की विश्व पर्यटन मानचित्र पर जगह बनी है। यहां देश-विदेश से प्रतिदिन आठवीं सदी में निर्मित चांदबावड़ी को देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं | लेकिन उनको विश्वस्तरीय सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं।यहाँ आठवीं सदी में ही निर्मित प्रसिद्ध हर्षद माता का भी मन्दिर है  | जहां आकर देशी विदेशी पर्यटक ढोक लगाते है व मन्नत मांगते हैं ।

इसके अलावा धार्मिक क्षेत्र में मेहंदीपुर बालाजी की महिमा भी देशभर में है। जिले के कईअन्य धार्मिक स्थल भी देशभर में पहचान रखते हैं। दौसा के पंच महादेव मंदिर, लालसोट में पपलाज माता व बीजासणी माता मंदिर, भाण्डारेज व आलूदा की बावडिय़ां, बांदीकुई का दुर्बलनाथ मंदिर व चर्च भी प्रसिद्ध स्थल हैं। जिले में पर्यटन विकास भी गति नहीं पकड़ पाया।

 

आंकड़ों की नजर से जिला :-

जनसंख्या- 16 लाख 34 हजार 409
क्षेत्रफल- 3432 वर्ग किलोमीटर
जनसंख्या घनत्व- 476 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर 
(सभी आंकड़े 2011 की जनगणना रिपोर्ट के आधार पर)
लिंगानुपात- 930
साक्षरता दर- 68.16
ग्राम पंचायत-234
उप तहसील- 7
विधानसभा क्षेत्र-5