बिहार का एक ऐसा समाज जो इस परम्परा से रहता हैं काफी दूर : वर पक्ष देता कन्या को शगुन

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
आज भी हमारे समाज दहेज़ लेने का सिलसला अभी भी चल रहा हैं .पर ऐसा भी हैं बहुत सी जगहों पर दहेज़ नहीं लिया जाता हैं . क्योकि कही न कही दहेज़ प्रथा भी समाज को खोकला कर रही हैं . कुछ लोग दहेज लेने को अपना स्टेटस समझते है. बिना दहेज शादी को लोग अपनी शान के खिलाफ समझते है. आए दिन कोई न कोई बेटी दहेज की समस्या को लेकर मौत की बलि चढ़ती रहती है. जहां एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री दहेज प्रथा समाप्त करने के खिलाफ समाज सुधार यात्रा के बहाने समाज को जागरूक करते रहे हैं. लेकिन बिहार के भागलपुर का जहा सदियों से कहलगांव के आदिवासी लोग बिना दहेज के शादी कर लोगों को आइना दिखा रहे है. सदियों से लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है. आदिवासी समाज में आज भी बिना दहेज लिए शादी हो रही हैं और इस समाज में वर पक्ष ही कन्या पक्ष को शगुन देता है. सदियों से बिना तिलक दहेज के शादी विवाह करने की परंपरा आज भी आदिवासी समाज में कायम है. अन्य वर्गों के लिए यह समाज प्रेरणा दायक बना हुआ है.

वर पक्ष देता कन्या को शगुन:
यहां हमने देखा कि आज भी आदिवासी समाज में बिना दहेज के शादी की रस्म पूरी की जाती है. आदिवासी समाज में अमीर से अमीर घराने में बिना तिलक दहेज का शादी किया जाता है. वर पक्ष जब कन्या वरण के लिए उसके गांव बराती स्वरूप पहुंचते हैं तो वर पक्ष बारातियों को अपने खर्च पर ही खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं. ताकि कन्या पक्ष को किसी प्रकार की परेशानी न हो. वर पक्ष शादी के समय जब कन्या पक्ष के दरवाजे पर बारात लेकर पहुंचता है. शादी की रस्में शुरू हो जाती हैं. तब वर पक्ष की ओर से तीन साड़ी पांच रुपय उपहार के तौर पर कन्या पक्ष को दिए जाते है. ये उपहार इसलिए दिया जाता है क्योंकि वर पक्ष कन्या पक्ष का आभार व्यक्त करता है कि उन्होने अपने जिगर का टुकड़ा पाल-पोशकर उन्हें हमेशा के लिए दान दे दिया हैं.

वर पक्ष ही करता बारातियों के खान-पान की व्यवस्था:
बारातियों का पेड़ के नीचे या साधारण सामियाना के नीचे जनवासा होता है. रातभर बाराती जनवासा में रहते है. लड़की वाले के दरवाजे पर दस्तक तक नहीं देतें है. सुबह को अगुवा के द्वारा लड़की वालों को बाराती आने की सूचना दी जाती है. सूचना पाकर शादी के लिए वह लोटा भर पानी लेकर बाराती के समीप आते है. तब समाज के विधि विधान के अनुकुल आगे की रस्म पूरी की जाती है. बताया जाता है कि बांस के बने डाली में कन्या को उठाकर लाने की परंपरा रही है. डाली में लड़की को सिंदूर डाला जाता है.

सबके सहयोग से होता भोज:
दहेज के लिए वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से कभी डिमांड ही नहीं करते हैं. केवल शादी के दिन कन्या पक्ष के लोग गांव में खान-पान के लिए निमंत्रण देते है. उस वक्त गांव के लोग संदेश के रूप में डलिया, चावल, सब्जी, दाल सहयोग के रूप में देते हैं ताकि कन्या पक्ष को खिलाने-पिलाने में भार न हो. ये परंपरा अन्य दूसरी शादियों में भी अपनाई जाती हैं ताकि बेटी की शादी होने से पिता को राहत मिल सके. इससे आपसी भाईचारा और प्रेम भी कायम रहता है. वहीं दहेज की बात को लेकर आज तक इस समुदाय में शादी नहीं टूटी है.