महाराष्ट्र में अब दिखाई दे रहा है, भाजपा की राजनीति का असली चेहरा

राजनीतिक दलों के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखना, बना चुनौतीपूर्ण कार्य

रिपोर्ट : अवस्थी बी के, रीडर टाइम्समुम्बई : यूं तो कई मौकों पर राजनीति और राजनेताओं का असली चेहरा देखने को मिलता रहा है। लेकिन इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ भी हो रहा है उसे लोकतंत्र के लिए उचित कतई नहीं माना जा सकतासवाल यह नहीं है कि सैद्धांतिक मतभेद होने के बाद भी शिवसेना और कांग्रेस में गठबंधन हो रहा हैअर्थपूर्ण सवाल यह भी है कि पूर्ण बहुमत नहीं होने पर भी भाजपा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली .

यहाँ लिख देने में कोई संकोच नहीं कि यदि ज्यपाल का समर्थन नहीं होता तो देवेन्द्र फडऩवीस 23 नवम्बर की सुबह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ले पातेजिस घड़ी फडऩवीस ने शपथ ली, तब एनसीपी के विधायक दल के नेता अजीत पवार भी साथ थे। पवार ने ही एनसीपी के 54 विधायकों के समर्थन वाला पत्र राज्यपाल को दिया।

लेकिन अब सवाल उठना लाज़मी है कि राज्यपाल ने इस पत्र की हकीकत जाने बगैर ही फडऩवीस और पवार को शपथ कैसे दिलवा दी क्या यह राजनीतिक अदूरदर्शिता का परिणाम है अथवा संवैधानिक अधिकारों का दुरूपयोग कर भाजपा को लाभान्वित करने की पराकाष्ठाअब जब अजीत पवार के साथ चार पांच विधायक भी नहीं बचे हैं, तब सवाल उठता है कि विधानसभा में देवेन्द्र फडऩवीस किस प्रकार अपना बहुमत साबित करेंगे.

राज्यपाल लगातार महाराष्ट्र की राजनीति पर रखे हुए हैं, लेकिन इसके बाद भी अजीत पवार के कथित समर्थन वाले पत्र को पहली नजर में सही मान लिया गया, यह उनकी लोकतंत्र के प्रति अदूरदर्शिता ही कहा जाएगा राज्यपाल ने पूरी तरह अजीत पवार पर भरोसा किया जबकि उन्हें एनसीपी के विधायकों की राय भी जाननी चाहिए थी भाजपा अब भले ही कुछ भी कहे लेकिन भाजपा के लिए भी विधानसभा में बहुमत साबित करना मुश्किल हो रहा है।

एक ओर जहां भाजपा लोकतंत्र की हत्या करने पर आमादा हो, दुविधा में फंस गई है, वहीं कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के लिए भी अपने-अपने विधायकों को एकजुट रखना चुनौती बन गया है। पिछले कई दिनों से शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस ने अपने विधायकों को होटलों में रोके रखा है। यानि इन दलों के नेताओं को अपने विधायकों पर ही भरोसा नहीं है।

23 नवम्बर से पहले तक एनसीपी के 54 विधायकों की किसी भी स्तर पर बाड़े बंदी नहीं की गई थी। लेकिन अजीत पवार की बगावत के बाद शरद पवार ने अब एनसीपी के विधायकों को भी एक होटल में रुकवा दिया है।24 नवम्बर को शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने एनसीपी के विधायकों से अलग से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि शिवसेना के विधायक पूरी तरह एकजुट हैं।

असल में घटनाक्रम की जड़ में भाजपा की ओर से यह कहा जाना कि शिवसेना के 56 विधायकों में से अनेक विधायक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के समय भाजपा का समर्थन करेंगे। लेकिन ठीक इन खबरों के बीच ही उद्धव ठाकरे एनसीपी विधायकों के कैम्प में पहुंचे हैं।यह बात भी इस पूरे घटनाक्रम के आदि और अंत का सत्य है कि कांग्रेस ने अपने सभी 44 विधायकों को शुरू से ही एकजुट कर रखा है।

लेकिन सूत्रों की माने तो कांग्रेस को भी अपने विधायकों के टूटने का अंदेशा हैं, इसलिए 24 अक्टूबर को परिणाम की घोषणा के बाद ही कांग्रेस के विधायकों को अलग अलग होटलों में रखा गया है। इतनी अधिक सतर्कता के बाद भी कांग्रेस को अपने विधायकों पर भरोसा नहीं होना है।इसमें कोई दो राय नहीं कि शरद पवार ने अपनी ताकत को दिखाते हुए एनसीपी के 54 विधायकों में से 50 को दोबारा से एकजुट कर लिया है.

लेकिन पवार को भी अभी यह भरोसा नहीं है कि विधानसभा में कितने विधायक भाजपा को समर्थन दे सकते हैंहाँलाकि एनसीपी कांग्रेस और शिवसेना ने एकजुटता दिखाने का शुरू से ही प्रयास किया है, लेकिन इस एकजुटता की हकीकत विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के समय ही पता चलेगी.

भाजपा के सूत्रों का कहना है कि एनसीपी, कांग्रेस और शिवेसना भले ही अपने विधायकों को सात तालों में बंद कर ले, लेकिन विधानसभा में बहुमत के समय भाजपा की सरकार की जीत होगी. हाँ, अगर ऐसा होता है, तो यह प्रजातंत्र की हत्या करने के समान ही कृत्य होगा.