“मानव विकास सूचकांक” में पिछड़ा भारत ; जाने क्या होता हैं पैमाना ,

शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

यह चिंताजनक है कि , मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत अपने खराब प्रदर्शन के कारण पिछड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 के मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों में 131वें स्थान पर है। पिछले साल भारत इसमें 129वें स्थान पर था यानी इस साल भारत दो पायदान नीचे खिसक गया है। HDI किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का मापन है। मानव विकास सूचकांक की सूची में नॉर्वे सबसे ऊपर है, इसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड जैसे देशों के नाम शामिल हैं। दरअसल मानव विकास सूचकांक हमें यह बताता है कि किसी देश में लोगों की स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच कितनी है, उनका जीवन स्तर कैसा है।

पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब अल हक ने मानव विकास सूचकांक बनाया था। यह इंडेक्स अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन की मानवीय क्षमता की अवधारणा पर आधारित है। सेन का मानना था कि क्या लोग अपने जीवन में बुनियादी चीजों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित जीवन स्तर को पाने में सक्षम हैं। मानव विकास सूचकांक भी इन्हीं बिंदुओं पर आधारित है। इसके तीन प्रमुख बिंदु हैं, जिसके आधार पर इस इंडेक्स का निर्माण किया जाता है। पहला है जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, दूसरा है संभावित स्कूली शिक्षा, तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु पीपीपी आधार पर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय है। रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ हवा, अच्छी सड़कें, सूचना का अधिकार, रोजगार आदि जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। जिस देश में प्रत्येक नागरिक को इन सभी सुविधाओं का लाभ मिलता है, जाहिर है वह देश उन्नत होगा।

इतना कमजोर क्‍यों है भारत का यह सूचकांक

अब सवाल यह है कि दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत का मानव विकास सूचकांक इतना कमजोर क्यों है कि वह सौ देशों में भी शामिल नहीं है? सार्वभौमिक सत्य है कि जिस देश की शिक्षा-स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर होती है, वहां लोगों की कार्यक्षमता भी ज्यादा होती है। भारत की आधी आबादी से ज्यादा तो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, उसको पर्याप्त मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अब सवाल है कि ऐसा क्या किया जाए कि देश के हर नागरिक को हर सुविधा उपलब्ध हो और मानव विकास सूचकांक में भी हम बेहतर पायदान पर आ सकें। यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए मार्केट इकोनॉमी का मॉडल बदलना पड़ेगा। इसके अलावा शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक निवेश में भारी वृद्धि करनी होगी। हमें समय रहते मानव विकास सूचकांक के क्रम के निम्न स्तर की स्थिति से उबरना ही होगा तभी जाकर आने वाले वर्षो में हम अपनी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की दर को भी कायम रख सकेंगे।