“सरकारी अस्पतालों की दवा राम भरोसे , 2 दवाएं जाँच में फेल”

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

 

  • 80 प्रतिशत मरीजों को दी जाने वाली दवा ( इंजेक्शन ) जाँच में फेल ।

  • मुनाफाखोरी के चलते घटिया क्वालिटी की दवा सप्लाई कर रही कंपनियां ।

  • पहले भी कई कंपनियों को किया जा चूका है ब्लैकलिस्ट ।

  •  कोरोना महामारी के चलते मुख्यमंत्री स्वस्थ सेवाओं को और बेहतर बनाने में दिन रात लगे हुए हैं, प्रदेश में प्रति 10 लाख अब 6 गुना ज़्यादा टेस्ट किये जा रहे हैं, पहले यह 545 प्रति 10 लाख थी और अब तो प्रदेश के हर जिले में स्क्रीनिंग करने की शुरुवात भी करी जा रही है , ताकि कोरोना से संक्रमितों को लक्षणों के आधार पर चिन्हित कर उन्हें ज़रुरत के अनुसार इलाज़ दिया जा सके और जो संदिग्ध है उन्हें घर पर या हालत के हिसाब से क्वारंटीन सेंटर में रखकर इलाज़ किया जा सके , लेकिन कुछ लापरवाहियों के चलते स्वास्थ सेवाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है ।

  • सरकारी अस्पतालों में उप्र मेडिकल सप्लाईज कारपोरेशन लिमिटेड के माध्यम से दवा की आपूर्ति होती है। मेसर्स पुष्कर फार्मा भंडारीवाला खेरीकला अम्बड ने इंजेक्शन ट्रेमोडॉल हाइड्रोक्लोराइड (बैच नम्बर टीआरएम-216ए) की आपूर्ति की। 14 फरवरी को औषधि निरीक्षक ने बरेली सीएमओ के मुख्य औषधि भंडार से नमूना लिया। 20 मई को जांच रिपोर्ट आई। जिसमें नमूना जांच में फेल मिला।

  • वहीँ दूसरी तरफ ओपीडी व भर्ती मरीजों को दी जाने वाली गैस की दवा ओमीप्रोजोल भी मानकों के अनुरूप नहीं मिली है। मेसर्स सुपर फार्मुलेशन प्राइवेट लिमिटेड ओमीप्रोजोल (बैच नम्बर ओएमयू 27)  की आपूर्ति की थी। इसका नमूना हाथरस के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एकत्र किया गया था। जांच में नमूना फेल हो गया।

  • कारपोरेशन में गुणवत्ता नियंत्रक के प्रबंधक ने 29 जून को अस्पतालों को पत्र जारी कर संबंधित बैच के इंजेक्शन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इसी तरह ओमीप्रोजोल के संबंधित बैच का वितरण रोक दिया है। दोनों दवाएं वापस मंगाने के निर्देश दिए गए हैं।

  • सरकारी अस्पतालों में ऐसी सैकड़ों दवाएं प्राइवेट कंपनियां सप्लाई करती है और मोटे मुनाफे कमाती हैं , लेकिन मरीजों की जान का सौदा कर मुनाफा कमाना कहाँ तक जायज़ है . पहले भी कितने दवाओं के नमूने जांच में फेल हो चुके हैं और कुछ कंपनियों को फेल होने वाली दवा के लिए काली सूची में भी डाला जा चुका है, लेकिन यह महज़ एक खानापूर्ति नज़र आती है. अगर हर दवा के हर बैच की रैंडम टेस्टिंग अनिवार्य और सुचारू रूप से करी जाए तो इस घोटाले और मुनाफेखोरी को रोका जा सकता है ।