सवर्ण आरक्षण को लेके BJP ने खेला सियासती ख़ेल

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नई दिल्ली :- उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने वालासंविधान 124वां संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया है | केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने संविधान (124 वां संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया | केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही इसे मंजूरी प्रदान की है | विधेयक पेश किये जाने के दौरान समाजवादी पार्टी के कुछ सदस्य अपनी बात रखना चाह रहे थे लेकिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसकी अनुमति नहीं दी |

 

 

सूत्रों के अनुसार, यह कोटा मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण से अलग होगा | सामान्य वर्ग को अभी आरक्षण हासिल नहीं है | समझा जाता है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े ऐसे गरीब लोगों को दिया जाएगा, जिन्हें अभी आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है | आरक्षण का लाभ उन्हें मिलने की उम्मीद है जिनकी वार्षिक आय आठ लाख रूपये से कम होगी और 5 एकड़ तक जमीन होगी |

 

आपको बता दें कि मोदी सरकार ये आरक्षण आर्थिक आधार पर ला रही है, जिसकी अभी संविधान में व्यवस्था नहीं है | संविधान में जाति के आधार पर आरक्षण की बात कही गई है, ऐसे में सरकार को इसको लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा | सरकार के इस फैसले को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए देखा जा रहा है |

 

 

सरकार इसके लिए जल्द ही संविधान में बदलाव करेगी | इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में बदलाव किया जाएगा | दोनों अनुच्छेद में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा |

 

 

सवर्ण आरक्षण का लाभ का असर यूपी में काफी देखा जा सकता है | अकेले यूपी में करीब 40 सीटें ऐसी हैं, जहां सवर्ण वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं | खास बात ये है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को इन्हीं 40 सीटों में से 37 सीटों पर जीत मिली थी | वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की बम्पर जीत के पीछे सवर्ण मतदाताओं का अहम हाथ रहा, इस चुनाव में 1980 के बाद से सबसे ज्यादा बीजेपी एमएलए सवर्ण वर्ग के जीते, यूपी विधानसभा में इनका प्रतिशत 44.3 है, जो 2012 की तुलना में 12 प्रतिशत ज्यादा है |

 

 

सीटों पर वोटों के ताने-बाने पर गौर करें तो यूपी के कुशीनगर, गोरखपुर, संतकबीर नगर, देवरिया, भदोई, वाराणसी, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, लखीमपुर खीरी, प्रतापगढ़, बहराइच, बाराबंकी, गोंडा, रायबरेली, अमेठी में सवर्ण जातियों का सीधा असर राजनीति पर दिखता है | उदाहरण के लिए कांग्रेस के गढ़ अमेठी को देखें तो यहां सवर्ण मतदाताओं की संख्या करीब 4 लाख है | इसमें सबसे ज्यादा 1.89 लाख ब्राह्मण, 1.37 क्षत्रिय और करीब 60 हजार कायस्थ, वैश्य और जैन की आबादी है |

 

 

दरअसल यूपी में कुल मतदाताओं का 25-28% हिस्सा अगड़ी जातियों का है, जिसमें ब्राह्मण सबसे अधिक हैं | ये आंकड़ा मोटे तौर पर करीब 15 फीसदी माना जाता है | इसके बाद करीब 4 से 5 प्रतिशत क्षत्रिय मतदाता माने जाते हैं | आंकड़ों के अनुसार बीजेपी को हर चुनाव में 50 प्रतिशत से अधिक वोट सवर्ण मतदाता के मिलते आए हैं | 2014 में ये आंकड़ा 80 फीसदी तक पहुंचा |

 

 

आपको बता दें कि पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट में बदलाव करने का आदेश दिया था | तब देशभर में दलितों ने काफी प्रदर्शन किया था | जिसको देखते हुए केंद्र सरकार ने सुुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया था | माना जा रहा था कि मोदी सरकार के इस फैसले से सवर्ण काफी नाराज हो गए हैं | दलितों के बंद के बाद सवर्णों ने भी भारत बंद का आह्वान किया था |

 

 

कांग्रेस का कहना है कि इस प्रकार के आरक्षण पर काफी तकनीकि दिक्कतें हैं, लोकसभा चुनाव से पहले इस प्रकार आरक्षण देने का क्या मकसद है ये भी देखना होगा | उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बिल आने और पास होने में काफी समय लग सकता है | सरकार इस मुद्दे को लेकर सीरियस नहीं है |

 

 

चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने बड़ा चुनावी दांव चल दिया है | दरअसल एससी/एसटीए एक्ट में संंशोधन बिल लाकर अपने कोर वोट बैंक सवर्णों को नाराज कर चुकी बीजेपी के पास यही एक आखिरी रास्ता बचा था | हालांकि गरीब सवर्णों को आरक्षण की बात काफी सालों से हो रही थी |

 

 

इस बिल के विरोध में शायद ही कोई बड़ी पार्टी खड़ी हो पाए क्योंकि कई सीटों पर सवर्णों की आबादी समीकरण बना और बिगाड़ सकती है | यही वजह है कांग्रेस और मायावती भी इस बिल के समर्थन में खड़े हैं | हालांकि असदुद्दीन ओवैसी ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध किया है |