सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और उनका साहित्यिक अवदान : – राजीव कुमार झा


लेखक राजीव कुमार झा
रीडर टाइम्स न्यूज़

जन्मदिन पर विशेष लेख : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और उनका साहित्यिक अवदान । राजीव कुमार झा । ‘ वर दे वीणावादिनी वर दे . स्वतंत्र रव अमृत मंत्र नव भारत में भर दे ‘ निराला । आधुनिक हिंदी कविता के इतिहास में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य लेखन को कई दृष्टि से युगांतकारी माना जाता है। उनका जन्म 21 फरवरी 1899 में हुआ। निराला का बचपन बंगाल के महिषादल में व्यतीत हुआ। और विवाह के बाद अपनी पत्नी मनोहरा देवी से उन्होंने हिंदी सीखी। आगे उनका जीवन इलाहाबाद में बीता . यहाँ के बारे में लिखी उनकी कविता ‘

  ‘तोड़ती पत्थर ‘ को हिंदी कविता में नये यथार्थ की व्यंजना का प्रतीक कहा जाता है ‘

            ‘देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर ‘

‘गुरू हथौड़ा हाथ करती बार – बार प्रहार सामने तरुमालिका’ ‘अट्टालिका प्राकार चढ़ रही थी। धूप गर्मियों के दिन’ 

         ‘दिवा का तमतमाता रूप रुई ज्यों जलती हुई। भू गर्द चिनगी छा गयी ‘

प्राय : हुई दोपहर ‘उनके काव्य लेखन में संवेदना और भाव विचार का धरातल अत्यंत विस्तृत और समृद्ध है। इनके काव्य के शिल्प सौंदर्य में युगीन जीवन चेतना के अलावा भारतीय धर्म अध्यात्म संस्कृति समाज के गहन जीवन प्रसंगों का समावेश है। और वे यथार्थवाद के अलावा राष्ट्रीय चेतना और नवजागरण के कवि माने जाते हैं। कबीर के बाद हजारों साल पुरानी हिंदी कविता को निराला के काव्य लेखन ने गहराई से प्रभावित किया। उनकी ‘ भिक्षुक ‘ शीर्षक कविता को हिंदी में विशिष्ट अर्थ और जीवन संदर्भ की कविता कहा जाता है। सचमुच वे मानवतावादी कवि थे। और दीन हीन शोषित प्राणियों के प्रति उनके ह्रदय में अपार करुणा का भाव सदैव विद्यमान रहा। आधुनिक हिंदी कविता में उन्हें स्वतंत्रता का गायक और संस्कृति का सर्जक कहा जाता है। उनके काव्य संग्रह ‘ परिमल ‘ को आधुनिक हिदी कविता की सबसे विशिष्ट कृति कहा जाता है। इसके अलावा ‘ गीतिका ‘ और ‘ अनामिका ‘ भी उनकी रचित कालजयी काव्यकृतियाँ हैं। वर्डसवर्थ की तरह से निराला भी रोमांटिक कवि हैं। वे पौरुष और संघर्ष के कवि माने जाते हैं। निराला पर विवेकानंद के विचारों का गहरा प्रभाव था। और काव्य के अलावा अन्य विधाओं में लेखन कार्य में सतत संलग्न रहने के कारण उनका व्यक्तिगत जीवन अभावग्रस्त बना रहा। अपनी पुत्री सरोज का विवाह भी वे ठीक से नहीं कर पाए और सरोज का विवाह के बाद देहांत भी हो गया। उसकी स्मृति में लिखी उनकी कविता ‘ सरोज स्मृति ‘ को शोक गीत कहा जाता है। निराला विद्रोह और विप्लव के कवि हैं। और कविता में उन्होंने स्वतंत्रता का आह्वान किया है – ‘

‘जागो फिर एक बार समर में अमर कर प्राण गान गाये ‘

      ‘महासिंधु से सिंधुनद तीरवासी सैंधव तुरंगों पर चतुरंग चमुसंग ‘

‘सवा – सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा गुरु गोविंद सिंह निज नाम जब कहाऊँगा ‘

     ‘ किसी ने सुनी वीर जनमोहन अति दुर्जय संग्राम राग फाग था ‘

‘ खेला रण बारहों महीनों में शेरों की माँद में आया  है आज स्यार ‘जागो फिर एक बार ‘

निराला को हिंदी कविता में महाप्राण कहकर संबोधित किया जाता है। वसंत और वर्षा ऋतु का सुंदर चित्रण निराला ने किया है। नवजीवन के भाव इनकी कविताओं में विशेष रूप से विद्यमान हैं। वे सरस्वती के सच्चे उपासक थे। और वेदांत के जीवन दर्शन में उनकी गहरी आस्था थी। 15 अक्टूबर 1961 में इनका देहांत हो गया।