ग़ज़ल : मेरा पैग़ाम मेरे यार को पहुंचा देना , जो इशारे हैं समझ कर उसे समझा देना

मेरा  पैग़ाम  मेरे  यार   को   पहुंचा  देना,

जो इशारे हैं समझ कर उसे समझा  देना।

कोई  पैग़ाम  हवा  ले  के  अगर  आ जाये,

मेरा  दरवाज़ा  उसे  दूर  से  दिखला  देना।

 

सारे दावाये मोहब्बत को समझ जाऊं गा,

मुस्कुरा कर  के  जनाज़ा मेरा उठवा देना।

मेरी  ग़ैरत  का  तक़ाज़ा  है  चला आया हूँ,

भेजा था रब ने  बुलाया  है  ये  बतला देना।

 

मेरी यादों का कोई अक्स छिपा गर हो कहीं,

ऐसी  तस्वीरों  को  ख़ामोशी से जलवा देना।

तायरे    शौक़    मुंडेरों   पे    मेरी   गर  बैठे,

सोज़   में   डूबे   तराने   उसे   सुनवा   देना।

 

जब भी तन्हाई के शिकवे में उलझ जाये कोई,

टूटते   रिश्तों   की   बरसात  में   नहला  देना।

इश्क़  वह इश्क़ कहाँ जिस में छिपा हो सौदा,

इश्क़   एहसास   है   ईसार   है   बतला  देना।

 

‘ मेहदी ‘ बेबस नहीं नादार  व मिसकीन नहीं,

मेरे  अशआर  कफ़न  पर  मेरे  लिखवा देना।

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मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हाल्लौरी “