ग़ज़ल : ज़ेहन पे छाई हैं जो बदलियां हटा के चलो, ग़लत निज़ाम पे अब बिजलियाँ गिरा के चलो

gazal final

ज़ेहन  पे  छाई  हैं  जो  बदलियां हटा  के चलो,

ग़लत निज़ाम पे अब बिजलियाँ गिरा के चलो।

वफ़ा  न   ढूंढो  यहां  पत्थरों  का  शह्र  है  यह,

मगर  वफ़ा  भरे   नग़में  यहां  पे  गा  के  चलो।

सुकूं   के   वास्ते   हंगामा  गर  चे  लाज़िम  हो,

हर  एक  बज़्म  में  हंगामा  फिर मचा के चलो।

कभी भी  रौशनी  चोरों  को  रास  आती  नहीं,

ख़मोश शम्मा हर  इक मोड़ पर जला के चलो।

ये  भूख  प्यास ये  हसरत  की आहो ज़ारी को,

सजा  के   होंठ  पे   धीरे  से  मुस्कुरा  के  चलो।

है  इश्क़ सच्चा तो  वादा संभल संभल के करो,

करो  जो  वादा  तो  हर हाल में निभा के चलो।

रहे   वफ़ा   के   मुसाफ़िर   से   मौत  डरती  है,

रहे   वफ़ा   पे  चलो  मौत  को  डरा  के  चलो।

हर  एक  रात  की  आग़ोश  में  है  सुबह पली,

अँधेरा  जब  भी  दिखे  तो  उसे  बता के चलो।

मैं  अजनबी  नहीं  यारो  तुम्हारा  ‘ मेहदी ‘  हूँ,

हमारे   साथ  चलो  और  सर  उठा   के  चलो।

मेहदी अब्बास रिज़वी

   ” मेहदी हल्लौरी “