उत्तर प्रदेश की बेटी ‘दीक्षा’ ने लीवर, किडनी और कॉर्निया डोनेट कर 5 लोगों को दी नई जिंदग‍ी

level transplant photo

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मोहम्मद कलीम
लखनऊ! वि‍श्व अंगदान दि‍वस से एक दि‍न पहले केजीएमयू के डॉक्टर्स ने गोरखपुर की दीक्षा का ब्रेन डेड होने के बाद लीवर, किडनी और कॉर्निया डोनेट कराकर 5 लोगों को नई जिंदग‍ी दी। शुक्रवार रात 9 बजकर 10 मिनट पर केजीएमयू से ग्रीन कॉरीडोर बनाकर महज 18 मिनट में लीवर एयरपोर्ट पहुंचाया गया, जिसे दिल्ली भेजा गया। वहीं,  उसकी दोनों किडनियां लखनऊ के एसजीपीजीआई भेजी जाएंगी, जबकि‍ कार्नि‍या केजीएमयू के नेत्ररोग वि‍भाग को दी गई हैं। ऐसे तैयार कि‍या गया ग्रीन कॉरीडोर का मैप…

एसपी ट्रैफि‍क के मुताबि‍क, रूट मैप के हि‍साब से केजीएमयू से अमौसी एयरपोर्ट की दूरी 31.4 किमी है। ग्रीन कॉरीडोर बनाने के लि‍ए केजीएमयू से हजरतगंज, राजभवन, अहि‍मामऊ और शहीदपथ होते हुए एयरपोर्ट ले जाने का रूट मैप तैयार कि‍या गया।  इसके लि‍ए हर चेक प्वाइंट और चौराहों पर दो-दो पुलि‍सकर्मि‍यों की तैनाती की गई।  साथ ही इस काम में सभी सीओ और एसपी लेवल के अधि‍कारी लगे।  एंबुलेंस के आगे एक इंटरसेप्टर लगी है, जो ट्रैफि‍क को क्लीयर करते हुए आगे बढ़ी।

 रोड एक्सीडेंट के बाद हुई थी सर्जरी, बाद में छात्रा हुई ब्रेन डेड

गोरखपुर निवासी 22 साल की दीक्षा श्रीवास्तव राजधानी में अपने ननिहाल में रहकर बीटेक की पढ़ाई कर रही थी। बीते 9 अगस्त को शाम करीब 7.30 बजे अपने पिता के साथ गोमतीनगर स्थित वेव मॉल के पास पैदल जा रही थी। दीक्षा अपने पिता के साथ सड़क पार करने लगी, उसी समय तेज रफ्तार से आती हुई मोटरसाइकिल ने उसे तेज टक्कर मारी।
टक्कर इतनी तेज थे कि दीक्षा उछल कर दूर गिर गई और उसका सिर जमीन से तेजी से टकरा गया। टक्कर से उसके पिता भी गंभीर रूप से घायल हो गए। दीक्षा के सिर में गंभीर चोट आने के बाद उसे इलाज के लिए 9 अगस्त की रात करीब 9 बजे केजीएमयू के ट्रामा सेंटर लाया गया। जहां उसी दिन देर रात सिर की गंभीर चोटों की सर्जरी की गई। 9 अगस्त से गुरुवार 12 अगस्त तक दीक्षा का इलाज ट्रामा सेन्टर में चला, लेकिन उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 12 अगस्त की सुबह डॉक्टरों ने दीक्षा को ब्रेन डेड घोषित कर दिया।

 ब्रेन डेड के बाद काउंसलरों ने परि‍जनों को बताया अंगदान का महत्व, तब कराया अंगदान

 ब्रेन डेड बाद परिजन काफी टूट गए, ब्रेन डेड मरीज के बारे में दीक्षा के परिजनों को केजीएमयू के कांउसलरों ने समझाने का प्रयास किया। शताब्दी अस्पताल के आर्गन ट्रांसप्लांट विभाग के कांउसलर पियुष श्रीवास्तव, क्षितिज वर्मा व समाजसेवी अश्वनी सिंह ने सुन्दर के परिजनों को अंगदान करने के बारे में जानकारी दी। दीक्षा की मां रेनू श्रीवास्तव व उसके मामा और भाई कांउसलरों की बात से सहमत हो गए और उन्होंने बीती शुक्रवार की शाम को ब्रेन डेड बेटी के अंगों को दान करने का निर्णय ले लिया। परिजनों द्वारा सहमति मिलने के बाद देर रात से ही विशेषज्ञों ने दीक्षा के अंगों को निकालने की तैयारी शुरू कर ली थी। शुक्रवार की रात करीब 8 बजे आर्गन ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख डॉ. विवेक गुप्ता, डॉ. अभिजीत चंद्रा, डॉ. परवेज अहमद व डॉ. मनमीत सिंह ने दीक्षा के अंगों को निकालने का काम शुरू किया। लगभग रात 10.30 बजे आपरेशन पूरा हुआ और डॉ. अभिजीत चंद्रा व डॉ. विवेक सुन्दर के लीवर को एक लाल बॉक्स में लेकर दिल्ली रवाना हो गए। वहीं दोनों किडनियों को ट्रांसप्लांट के लिए पीजीआई भेज दिया गया, साथ ही कार्निया केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग को दे दी गयी। केजीएमयू के आर्गन ट्रांसप्लांट विभाग द्वारा अभी तक ब्रेन डेड मरीजों से 16 लीवर व 24 किडनियों को निकालकर दूसरे संस्थानों में ट्रांसप्लांट के लिए भेजा गया है।

वि‍शेष बॉक्स में रखकर ले जाया गया लीवर

लीवर नि‍कालने के बाद उसे एक लाल रंग के वि‍शेष बॉक्स में रखा गया।  इस बॉक्स में ऑर्गन प्रिजर्वेटि‍व सॉल्यूशन और बर्फ के मि‍श्रण में लीवर को रखा गया। ऑर्गन डोनेट के बाद लीवर की 6 घंटे और कि‍डनी की 24 घंटे की लाइफ होती है।

आम आदमी भी ले सकता है ग्रीन कॉरीडोर की मदद

एसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन ने बताया कि मरीज का जीवन बचाने के लिए न केवल संस्थान, बल्कि आम आदमी भी ग्रीन कॉरीडोर की मदद ले सकता है। इसके लिए शर्त है कि 2 घंटे पहले एसपी ट्रैफिक को सूचना देनी होगी, जिससे तैयारी की जा सके।

क्या होता है ग्रीन कॉरीडोर

ग्रीन कॉरीडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है। यह उस वक्त बनाया जाता है कि जब आपात स्थिति में किसी मरीज का इलाज चल रहा हो। वर्तमान में यह व्यवस्था बेंगलुरु, दिल्ली, कोची, चेन्नई और मुंबई में उपलब्ध है। लेकिन लखनऊ की पुलिस ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की अपील पर यह ग्रीन कॉरीडोर बनाया।  इसमें पुलिस उस पूरे रूट को खाली करवाती है, जिसमें से एम्बुलेंस को गुजरना होता है। एम्बुलेंस के आगे पुलिस की गाड़ी चलती है, ताकि उसकी स्पीड में कोई ब्रेक न लगे, इसलिए इस प्रक्रिया को “ग्रीन कॉरीडोर” नाम दिया गया है। अगर फ्लाइट के जरिए उस ऑर्गन को ले जाया जाता है तो एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी मदद के लिए कहा जाता है।।