‘एचआईवी, डेंगू की तरह कोरोना की वैक्सीन भी पड़ सकती है अधर में : विशेषज्ञ,

संवाददाता मार्कण्डेय शुक्ला

रीडर टाइम्स

  • 100 से अधिक वैक्सीन प्री-ट्रायल स्टेज में 

  • ह्यूमन ट्रायल की प्रक्रिया लम्बी 

  • भारत में सभी तक वैक्सीन पहुँचाना एक बड़ी चुनौती

  1.  पूरे विश्व में कोरोना महामारी से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर संघर्ष चल रहा है. इस महामारी से सबसे ज्यादा पीड़ित देशों कि सूची में अमेरिका, इटली, फ्रांस,इंग्लैंड,जर्मनी आदि देश हैं, चाइना के बारे में अभी आकडे स्पष्ट नहीं हैं, क्यूंकि ड्रैगन ने दुनिया से आकडे छिपा लिए हैं, ताकि कहीं उसकी पोल खुल न जाये कि वो ही इस महामारी का अधिकारिक रूप से जनक है. इन तमाम आकड़ों के बीच पूरा विश्व इस महामारी से बचने के लिए वैक्सीन का इंतज़ार कर रहा है ऐसे में स्वास्थ क्षेत्र के एक बड़े विशेषज्ञ का कहना है कि हो सकता है कि डेंगू और एचआईवी की तरह कोरोना की भी वैक्सीन न बन पाए।

  2.   सीएनएन के मुताबिक, इंपीरियल कॉलजे लंदन के नाबारो के मुताबिक ‘कुछ ऐसे वायरस हैं, जिनके खिलाफ अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाया है। कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता कि वैक्सीन आ ही जाएगा और यदि आता भी है तो यह कितना प्रभावशाली होगा और सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरेगा कि नहीं. उन्होंने कहा कि जब तक वैक्सीन नहीं बन जाता है हमें खुद को बचाव के लिए तैयार करना एक विकल्प हो सकता है।

  3.  प्रोफ़ेसर डेविड कोविड-19 पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत के रूप में भी सेवा दे रहे हैं .प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं  कि वैक्सीन डिवेलपमेंट की प्रक्रिया सुस्त और कष्टदायक है। उन्होंने कहा, ”आपकी उम्मीदें बहुत अधिक हैं और फिर यह टूट जाती हैं। हम एक बायोलॉजिकल सिस्टिम से जूझ रहे हैं न कि किसी मैकेनिकल सिस्टम से । यह वास्तव में इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर किस तरह प्रतक्रिया देती है।” वहीँ अमेरिका के ह्यूस्टन के डॉक्टर पीटर होत्ज कहते हैं कि हमने कोई भी वैक्सीन 1 या 2 साल में नहीं बनाया, किसी भी वैक्सीन को बनाने के दौरान बहुत साड़ी प्रक्रियाओं से गुज़ारना पड़ता है, टेस्टिंग जिसमें से एक बड़ा और पेंचीदा दौर है. किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना इतना आसन नहीं होता.इसका मतलब यह नहीं है कि यह असंभव है, लेकिन यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। हमें प्लान ए और प्लान बी की जरूरत है।

  4.  बताते चलें कि दुनिया में 100 से अधिक वैक्सीन इस समय प्री-क्लिनिकल ट्रायल्स स्टेज पर हैं। इंग्लैंड और अमेरिका में एक-एक वैक्सीन का मानव परीक्षण भी चल रहा है। भारत में भी विशेषज्ञों कि टीम वैक्सीन खोज में लगी हुई है, और काफी हद तक उनको सफलता भी मिली है, पर सभी सुरक्षा और स्वास्थ मानकों पर खरा उतरने के बाद ही यह निर्माण प्रक्रिया में आ सकती है और उसके बाद 135 करोड़ की आबादी के लिए दवा बनाने और देश के अंतिम व्यक्ति तक उसको पहुँचाने में कई साल का वक्त लग सकता है, ऐसे में कोरोना के साथ सुरक्षात्मक रूप से जीना हमको सीखना होगा, क्यूंकि पूरी दुनिया के विशेषज्ञ मानते हैं कि यह जाने के बाद फिर वापिस लौट सकता है, इसके प्रति जागरूकता और संक्रमण रोकने के लिए सामाजिक दूरी, चेहरे को ढकना, बार-बार हाथ धोना, और अपने आस-पास सफाई बनाये रखना ही एक मात्र विकल्प है।