केवल एक रोटी पूरे परिवार का भरती है पेट

maanda roti

अतीत के पन्नों में शहर बुरहानपुर का नाम दक्खिन यानी दक्षिण के दरवाज़े के तौर पर दर्ज है. मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर में मांडा रोटी 16वीं शताब्दी यानी आज से तकरीबन 400-500 साल पहले मुगल सैनिकों के लिए बननी शुरू हुई.  मध्य काल में ख़ास तौर पर इस शहर को मुग़लों की सैन्य छावनी के रूप में जाना जाता था .

अगर बुरहानपुर घूमने के दौरान किसी को भूख लग जाए या फिर पूरी टीम या किसी परिवार का पेट भरना हो, तो इस शहर की सिर्फ एक रोटी ही काफी है. सिर्फ एक रोटी और वो भी कई आदमियों के लिए.  ये कमाल है यहां कि एतिहासिक मांडा रोटी का. सदियों से बुरहानपुर की शान और पहचान बन चुकी मांडा रोटी आम रोटियों से काफी अलग है. इस रोटी के दो सिरों के बीच की दूरी तकरीबन 03 से 04 फ़ीट होती है. लेकिन आप सिर्फ मांडा रोटी की साइज़ पर मत जाइये, बल्कि खूबियों के लिहाज़ से भी मांडा रोटी आम रोटियों से बहुत बेहतर है.

मांडा रोटी बुरहानपुर में 16वीं शताब्दी यानी आज से तकरीबन 400-500 साल पहले बनने शुरू हुई. दरअसल जब दक्षिण जाने के लिए मुग़ल फ़ौजें बुरहानपुर में डेरा डालती थीं, तब उतनी बड़ी फ़ौज को जल्दी खाना परोसना रसोइयों के लिए एक बड़ी चुनौती हुआ करता था. तब रसोइयों ने उस मुश्किल का हल निकाला मांडा रोटी के रूप में. उस समय के बाद से तारीख़ तो बदलती रही लेकिन मांडा रोटी कभी नहीं बदली.

पीढ़ियों की विरासत बन चुके इस मांडा रोटी को बनाने वाले कारीगरों की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेश तक में है. मांडा रोटी की शोहरत बुरहानपुर से निकलकर देश के कई शहरों तक पहुंच चुकी है और वहां भी ऐसी रोटियां बनाने का सिलसिला शुरू हुआ है  .