कैसे सुधरेगा प्रदेश का हाल

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
कोरोना से हांफते उत्तर प्रदेश का हाल इतना ज्यादा खराब हो चुका है कि सरकार की इच्छाशक्ति कोरोना के आगे बौनी ही नजर आ रही है ।अस्पताल से शमशान तक मौत का नंगा नाच और  कराहती  चीखें आपकी सोच तक को पंगु बना रही है ।अब घरों के अंदर भी लोग सहम चुके हैं हर पल खौफ के साए में जी रहे हैं। जब प्रदेश के हाई कोर्ट ने सूबे की सरकार को असलियत का आइना दिखाया  तो अपनी नाकामी से बिलबिलाई सरकार सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची और सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र सरकार का भरोसा न तोड़ते हुए प्रदेश उत्तर प्रदेश सरकार के हक में फैसला सुना डाला। अब कोई यह बताए कि रात्रि कर्फ्यू से अब तक क्या हुआ है  जो आगे होगा और छुट्टी वाले दिन बंदी रहेगी का क्या मतलब है जब लगभग सभी सरकारी और कुछ एक को छोड़कर ज्यादातर निजी दफ्तर भी रविवार को बंद ही रहते हैं ।

योगी सरकार ने और ज्यादा सख्त नियमों लगाने की दलील देकर केस तो जीत लिया लेकिन अब सख्त नियमों पर भी एक नजर डालते है तो  उसमें सार्वजनिक जगह पर थूकने पर 500 रुपए का जुर्माना और बिना मास्क दूसरी बार पकड़े जाने पर 10000 रुपयों का जुर्माना वसूलने की बातें सजा कम हास्यास्पद ज्यादा लगती है क्योंकि उत्तर प्रदेश में इनको अमलीजामा पहनाना लगभग नामुमकिन है अब पूछिए कैसे तो जब तक पान की दुकान खुली है तो साहब पान और पान मसाला खाकर उसकी  पीक  निगल जाएंगे क्या? जैसे थूकते थे वैसे ही आगे भी थूकते ही रहेंगे ।

सारी बहस और तिकड़म का लब्बोलुआब भी यही है कि जैसे करो ना से लोग मर रहे थे वैसे आगे भी मरते रहेंगे सरकार को सिर्फ प्रधानी /पंचायत चुनावों की पड़ी है ।एक बार यहां चुनाव हो जाए लोग मरते हैं तो मर जाएं मतदान तो करके जाएं। सत्ताधीषों के खोखले दावों पर क्यों और कैसे विश्वास किया जाए जब मौत के शिकंजे में कसती जिंदगीयों की सूची में रोज नए नाम जुड़ते ही चले जा रहे हैं । और सरकार सिर्फ झूठी तसल्लीओं की चटनी चटाने में व्यस्त है । कौमी एकता की पहचान वाले कवि वाहिद अली वाहिद का मंगलवार को निधन हो गया । सरकार के नामी-गिरामी अस्पताल लोहिया संस्थान ने ना तो उन्हें स्ट्रेचर मिला और ना ही भर्ती उन्हें बैरंग घर लौटा दिया गया ।

इस दौरान उनकी सांसो की डोर टूट चुकी थी। उनका बेटा कतर में है तो बेटी शामिया ने नम आंखों से लेकिन तल्ख लहजे में अपनी तकलीफ बयां की जिसमें बड़ी बेबाकी से सरकारी खामियां झांक रही थी । ऐसे ना जाने कितने और किस्से और कितनी ही कहानियां लखनऊ की गमजदा फिजा में तैर रही है लेकिन सरकार चुनावी मैदानों से आई खबरों की खुशियों में  झूम रही है।