जनजातीय विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए जोर दिया।

Renuka Singh Rajya Mantri

मयंक मधुर, नई दिल्ली

लघु-उद्योग भारती की झारखण्ड स्टेट-कोऑर्डिनेटर सुचिता सिंह ने दिल्ली के छत्तीसगढ़ी भवन में जनजातीय विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह से मुलाकात की और उन्हें झारखण्ड की उद्यमी महिलाओं के समक्ष आने वाले समस्याओं से अवगत कराया, साथ में उन्हें झारखण्ड में होने वाले लघु-उद्योग भारती के राज्य-स्तरीय महिला सम्मेलन में आने के लिए आमंत्रित किया।

लघु-उद्योग भारती के माध्यम से महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने के लिए, जनजातिय विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह के नेतृत्व में लघु-उद्योग भारती की झारखण्ड स्टेट-कोऑर्डिनेटर सुचिता सिंह ने आगे बढ़ चढ़कर काम करने का संकल्प लिया हैं। साथ ही महिलाओं के स्वास्थ, शिक्षा, सुरक्षा, और रोजगार के लिए जन जागरण के माध्यम से जागरूकता ला रही हैं।

सुचिता सिंह से बात- चीत के दौरान, जनजातिय विकास राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने कहा, हमारा समाज शुरू से ही पुरुष प्रधान रहा है। यहां महिलाओं को हमेशा से दोयम दर्जे का माना जाता है। पहले महिलाओं के पास अपने मन से कुछ करने की सख्त मनाही थी। परिवार और समाज के लिए वे एक आश्रित से ज्यादा कुछ नहीं समझी जाती थीं, ऐसा माना जाता था कि उसे हर कदम पर पुरुष के सहारे की जरूरत हैं।

लेकिन अब महिला उत्थान को महत्व का विषय मानते हुए कई प्रयास किए जा रहे हैं, और पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण के कार्यों में तेजी भी आई है। इन्हीं प्रयासों के कारण महिलाएं खुद अब रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़कर आगे आ रही है। सरकार महिला उत्थान के लिए नई-नई योजनाएं बनाई हैं, कई एनजीओ भी महिलाओं के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करते आ रहे हैं, जिससे महिलाएं बिना किसी सहारे के हर चुनौती का सामना कर सकने के लिए तैयार हैं।

आज की महिलाओं का काम केवल घर-गृहस्थी संभालने तक ही सीमित नहीं है, वे अपनी उपस्थिति हर क्षेत्र में दर्ज करा रही हैं, बिजनेस हो या पारिवार महिलाओं ने साबित कर दिया है कि वे हर वह काम करके दिखा सकती हैं जो पुरुष समझते हैं कि वहां केवल उनका ही वर्चस्व है, अधिकार है।
जैसे ही उन्हें शिक्षा मिली, उनकी समझ में वृद्धि हुई। खुद को आत्मनिर्भर बनाने की सोच और इच्छा उत्पन्न हुई। शिक्षा मिल जाने से महिलाओं ने अपने पर विश्वास करना सीखा और घर के सामने की दुनिया को जीत लेने का सपना बुन लिया और किसी हद तक पूरा भी कर लिया, महिलाएं हर क्षेत्र में जाकर परचम लहरा रही हैं, चाहे खेल, शिक्षा, देश के सीमा पर लड़ने की हिम्मत हो या फिर प्रशासनिक, और तो और अंतरिक्ष में जाकर भी महिलाएं परचम लहरा रही हैं। आज हम गर्व से कह सकते हैं कि महिलाएं किसी से कम नहीं है, बशर्ते महिलाओं को समान अवसर दिया जाए तो वह हर बाधा को स्वीकार कर आगे बढ़ने की हिम्मत रखती हैं।

लेकिन पुरुष आज भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना पसंद नहीं करते, उनकी मानसिकता आज भी पहले जैसी ही है। विवाह के बाद उन्हे ऐसा लगता है कि अब अधिकारिक तौर पर उन्हें अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने का लाइसेंस मिल गया है। शादी के बाद अगर बेटी हो गई तो वे सोचते हैं कि उसे शादी के बाद दूसरे घर जाना है तो उसे पढ़ा-लिखा कर खर्चा क्यों करे। लेकिन जब सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाएं लाती है, तो वह उसे पढ़ाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं और हम यह समझने लगते है कि परिवारों की मानसिकता बदल रही है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर बड़े शहरों और मेट्रो सिटी में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र, नई सोच वाली, ऊंचे पदों पर काम करने वाली महिलाएं हैं, जो पुरुषों के अत्याचारों को किसी भी रूप में सहन नहीं करना चाहतीं, वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाएं हैं जो ना तो अपने अधिकारों को जानती हैं और ना ही उन्हें अपनाती हैं। वे अत्याचारों और सामाजिक बंधनों की इतनी आदी हो चुकी हैं की अब उन्हें वहां से निकलने में डर लगता है। वे उसी को अपनी नियति समझकर बैठ गई हैं।

हम खुद को आधुनिक कहने लगे हैं, लेकिन सच यह है कि मॉर्डनाइज़ेशन सिर्फ हमारे पहनावे में आया है लेकिन विचारों से हमारा समाज आज भी पिछड़ा हुआ है। आज महिलाएं एक कुशल गृहणी से लेकर एक सफल व्यावसायी की भूमिका बेहतर तरीके से निभा रही हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं तो स्वयं को पुरुषों से बेहतर साबित करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहती, लेकिन गांव और शहर की इस दूरी को मिटाना जरूरी है।