जो तुझमें बात है वह चाँद तारों में नहीं देखी, तुम्हारे लम्स की ख़ुशबू बहारों में नहीं देखी

यह नज़्म उन सभी को समर्पित है । जो इस बेरहम दुनियां में अकेली होकर अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में अपना सब कुछ तज देती हैं ।

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जो तुझमें  बात है वह  चाँद तारों  में  नहीं  देखी,

तुम्हारे  लम्स  की  ख़ुशबू   बहारों  में  नहीं  देखी।

तुम्हारे अक्स  से आईना  भी  शरमाया  फिरता है,

जो  बेबाकी  में   रौनक़  है  इशारों  में नहीं  देखी।

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कोई   तनहाई  में  तनहा  कोई  है  भीड़ में तनहा,

कोई  ग़म  के  तरानों  में  ख़ुशी  के  राग पा लेता।

कोई मक़सद अगर हो ज़िन्दगी पुरकैफ़ हो  जाती,

उसी मक़सद की ख़ातिर खूबसूरत साज़ पा लेता।

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तुम्हारा अहद, अज़्मो हौसला मन्ज़िल बुलंदी की,

यही तो  पासबानी की हसीं  सीरत की ज़ीनत है।

नहीं मुरझा कभी सकता शजर  क़ुर्बानिये निसवां,

यक़ीनन माँ के पाओं  के तले  बच्चों की जन्नत है।

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जो  अपने  रास्ते  हमवार  करते  बहते द रिया में,

भँवर उनका कभी भी बाल बांका कर  नहीं पाता,

यक़ीने  कामला  कशती  की सूरत  में  उभरती है,

हर इक सैलाब से तूफ़ा से टकरा कर गुज़र जाता।

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जो सरपर अपने बच्चे के सदा साया फ़िगन रहती,

सदाक़त  में  रंगी   ख़ुशबू    लिए  रंगीन  चादर  है,

तेरी हस्ती पर हूरों और मलक का है सलाम आया,

अजीमुल मरतबत जन्नत से बेशक  सिर्फ़ मादर है।

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सदफ़ बन कर जो मोती की हिफाज़त करते रहते हैं,

वह  कोई  आईना  होता  नहीं  होता  है  वह  जौहर,

रुकावट  कुछ नहीं  आती है  कोई उन  की  राहों में।

अँधेरे की हक़ीक़त क्या है बस रहता है इक शब् भर।

 

सलामत  तू  रहे  और तेरा अहदो अज़्म का परचम,

तेरी   आवाज़   गूंजे   गी   सदा   ही  आसमानों  में।

तुम्हारी   जैसी   हस्ती   के  ही  चर्चे  होते दुनियां में,

वही  है    ज़िन्दगी  जो  सांस   लेती   दास्तानों   में।

मेहदी अब्बास रिज़वी 

   ” मेहदी हललौरी “