देशभक्ति से भरी है ” परमाणु ”

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परमाणु की कहानी एक ऐसी कहानी है जो यह दर्शाता है कि भारत ने 1998 में अपना परमाणु टेस्ट किस तरह से किया था , जो बेहद ही रोचक और दिलचस्प है. इस फिल्म से जुड़े सभी लोग तारीफ और मुबारकबाद के हकदार हैं कि भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण की कहानी को उन्होंने बड़े ही रोचक अंदाज में फिल्मी पर्दे पर उतारा है.

उनकी ये फिल्म 80 प्रतिशत सच्चाई को बयान करती है और 20 प्रतिशत काल्पनिक. अब इसमें क्या सच है और क्या काल्पनिक फिल्म देखने के बाद इस गुत्थी को भी सुलझाने में एक अलग मजा रहेगा. कुल मिलाकर परमाणु में इतनी शक्ति जरूर है कि इस हफ्ते यह आपको सिनेमा घर की तरफ खींच लेगी.

 पूरी कहानी पोखरण परमाणु परीक्षण की

कहानी की शुरुआत 1995 से होती है जब पीएमओ के एक जूनियर ब्यूरोक्रेट अश्वत रैना (जॉन अब्राहम) भारत के परमाणु परीक्षण पर एक रिपोर्ट तैयार करके सरकार को देते हैं. लेकिन उस रिपोर्ट को पूरी तरह से नहीं पढ़ पाने की एवज में परमाणु मिशन धरा का धरा रह जाता है. मिशन के फेल होने का पूरा ठीकरा अश्वत के सिर पर फोड़ दिया जाता है इसके बावजूद कि उसकी रिपोर्ट को किसी ने भी ठीक से नहीं पढ़ा था और कई चीजों को नजरअंदाज कर दिया था.

इस वजह से अश्वत को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है और दिल्ली से वापस मसूरी की ओर रुख करना पड़ता है. घर की देखरेख उसकी बीवी सुषमा (अनूजा साठे) करती हैं जो की एक एस्ट्रो फिजिसिस्ट हैं. अश्वत इस बीच कॉलेज के लड़कों को लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिए पढ़ाना शुरू कर देता है और यही उसके रुपए कमाने का एकमात्र जरिया है. इस बीच दिल्ली में सरकार बदलती है और परमाणु परीक्षा की बात फिर से उठने लगती है.

प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सचिव एक बार फिर से उस मिशन को जिन्दा करते हैं और अश्वत को उसका नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित करते हैं. अश्वत भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन, रॉ, भारतीय सेना और स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन इत्यादि से लोगों को चुनकर एक टीम का गठन करते हैं. जब परमाणु परीक्षण के लिए टीम अपना डेरा राजस्थान के पोखरण में डालती है तब उनका सामना विलेन से होता है जो एक अमेरिकन सेटलाइट है. सारी बाधाओं पर अंत में ये टीम फतह पा लेती है.

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भारत के 1998 के परमाणु परीक्षण की कहानी इतनी अनूठी है यह बात अभिषेक शर्मा की इस फिल्म को देखकर पता चलता है. लेकिन सबसे अच्छी बात यही है कि दुनिया की नजरों से अब तक इस छुपी हुई इस कहानी को कहने का अंदाज भी बेहद लुभावना है.

अभिषेक शर्मा अपने कसे हुए निर्देशन और इस फिल्म के रिसर्च के लिए बधाई के पात्र हैं. इस फिल्म में कुछ भी अनर्गल नहीं नजर आता बल्कि सच यही है कि अब तक हम हॉलीवुड की जिन थ्रिलर फिल्मों को अभी तक देखते आ रहे थे .

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उनके मुकाबले परमाणु अपनी खामियों के बावजूद उनके पास खड़ी होती है. कहानी के साथ अभिषेक शर्मा ने किसी भी तरह का समझौता नहीं किया है. कहने का आशय यह है कि जनता को लुभाने के लिए किसी भी तरह का हथकंडा नहीं अपनाया गया है. एक ऐसी फिल्म को हरी झंडी दिखाने के लिए जॉन को भी बधाइयां देनी पड़ेगी.  ” परमाणु ” अगर एक अच्छी फिल्म बनी तो उसका पूरा श्रेय फिल्म के लेखक संयुक्ता चावला और साइवन क्वाड्रोस को जाता है .

देखकर खुशी होती है कि इन लोगों ने एक अच्छी कहानी को सामने लाने के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं किया है. कहने का मतलब यही है कि फिल्म से जुड़ी जो भी इनफार्मेशन है उसको सरल शब्दों में बताया गया है . इस हफ्ते आप 1998 के भारत के परमाणु परीक्षण की कहानी को देख सकते हैं.