पाकिस्तान में चुनाव प्रचार खत्म, जाने अबकी बार किसकी सरकार बनेगी पाकिस्तान में

Pakistan-election-2018-991159

पाकिस्तान में बुधवार को संघ और प्रांतों के चुनाव होने हैं, यहां दो महीने से चल रहा चुनाव प्रचार का दौर सोमवार आधी रात को खत्म हो गया, चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (PTI) चीफ इमरान खान, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के शहबाज शरीफ, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) बिलावल भुट्टो ने जगह-जगह सभाएं की, वहीं, घर-घर जाकर वोटर्स से वोट करने की अपील भी की, बता दें कि इस बार का पाकिस्तान चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव माना जा रहा है |

 

 

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल-एन और क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान की पार्टी पीटीआई के बीच 25 जुलाई के चुनाव में कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है, जानकारों का मानना है कि 10 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले इस प्रांत को जीतने वाले के पास ही केंद्र में सरकार बनाने की चाभी होगी |

 

 

पाकिस्तान में मतदाताओं में बेहद कम उत्साह और सुरक्षा की स्थिति तनावपूर्ण होने के बीच देश में बुधवार को होने वाले आम चुनाव के लिए दो महीने से चल रहा प्रचार का दौर सोमवार मध्यरात्रि को समाप्त हो गया। नियमों के मुताबिक, अब कोई भी उम्मीदवार या पार्टी नेता जनसभाओं या नुक्कड़ सभाओं को संबोधित नहीं कर सकेगा और ना ही रैली निकाल सकेगा।

 

 

पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने कहा था कि नियमों के मुताबिक, प्रचार अभियान सोमवार मध्यरात्रि तक खत्म हो जाना चाहिए ताकि मतदाताओं को सोच-विचार का समय मिले और वे 25 जुलाई को होने वाले मतदान में हिस्सा लेने की तैयारी कर सकें।

 

 

चुनाव आयोग के मुताबिक इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया भी राजनीतिक विज्ञापनों के प्रसारण और प्रकाशन से परहेज करेंगे। आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वालों को दो साल तक की जेल की सजा या एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है।

 

 

पाक में चुनावी तैयारियों के बीच यहां के अल्पसंख्यक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनकी बात को संसद तक कैसे पहुंचाई जाए। इसका सबसे बड़ा कारण है अल्पसंख्यकों को बहुत कम टिकट मिलना। इन्हें जो टिकट मिला है वह सिर्फ आरक्षित सीटों के कारण मिला है।

 

 

पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों में हिंदू, सिख, ईसाई और अहमदी मुसलमान शामिल हैं। पाक की कुल 20 करोड़ की आबादी में ये अल्पसंख्यक महज चार फीसदी हैं जबकि 15-20 फीसदी लोग शिया समुदाय के हैं। इनमें से महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय को सिर्फ आरक्षित सीटों पर टिकट दिया गया है। जबकि यहां भी ऐसे उम्मीदवारों को उतारा गया है जो किसी मुस्लिम के यहां काम करते हैं अथवा उन पर मुस्लिम पकड़ काफी अधिक है।

140c629bf69a4ff0b791d9596a2840a4_18

 

सच्चाई यह है कि 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली और चार राज्यों की विधानसभा में मुट्ठी भर अल्पसंख्यक निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर चुनाव लड़ रहे हैं। ये प्रत्याशी किसी पार्टी से नहीं जुड़ना तक नहीं चाहते हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि देश के ऐसे कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े नेताओं का क्या होगा जिन्होंने नई पार्टी के नाम पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। सुन्नी चरमपंथियों का एक तबका इस चुनाव में काफी सक्रिय है जो पाक को शियाओं से आजाद करने की वकालत कर रहा है।

 

 

बात-चीत के दौरान पीटीआई प्रमुख ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया, इंटरव्यू के दौरान इमरान खान भी पाकिस्तानी आर्मी की भाषा बोलते नजर आए l उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए कहा कि इस सरकार के कार्यकाल के दौरान रिश्ते बदतर हुए हैं |

 

 

मोदी सरकार की पाकिस्‍तान विरोधी आक्रामक नीतियों की वजह से दोनों सरकारों के बीच रिश्‍ते सहज नहीं रहे, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सभी के साथ अच्छे रिश्ते कायम रखना चाहता है, भारत के साथ रिश्ते सुधरने से पाकिस्तान को कारोबार के लिए बड़ा बाजार मिलेगा जिससे दोनों मुल्कों को फायदा होगा |

 

 

पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी करीब 20 लाख है जिनमें अधिकांश गरीब तबके से हैं। यहां पर हिंदुओं की देश में दूसरी सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी है। इनका रहबर सिंध प्रांत में सबसे ज्यादा प्रभाव है। इन्हें भारत-पाक के बीच तनातनी का खामियाजा सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है और बहुसंख्यक समाज इन्हें कातर निगाहों से देखता है।

 

 

वीरू कोहली नाम की एक महिला उम्मीदवार रहबर इलाके से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनका मानना है कि अगर वे जीत जाती हैं तो पाक संसद में हिंदुओं की बात सही तरह से उठा सकेंगी। पाकिस्तान में 25 जुलाई को होने जा रहे चुनाव में पहली बार 125 ट्रांसजेंडर चुनाव पर्यवेक्षक की भूमिका में होंगे।

इस दौरान वे पारदर्शिता और निष्पक्षता पर कड़ी नजर रखेंगे। उन्हें इस काम के लिए एक एनजीओ (ट्रस्ट फॉर डेमोक्रेटिक एजूकेशन और एकाउटैबिलिटी) प्रशिक्षित किया है। इसका मकसद लोगों को लोकतांत्रिक अधिकार और जिम्मेदारी के प्रति जागरूक करना है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ट्रांसजेंडर पर्यवेक्षकों को लाहौर, इस्लामाबाद, कराची और क्वेटा में चुनावी ड्यूटी लगाई जाएगी।