भारत को निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बना ईरान, कारोबार के लिए असमंजस की स्थिति

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भारत को तेल आपूर्ति करने के मामले में सऊदी अरब को पछाड़कर ईरान दूसरे पर पहुंच गया है। ईरान चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल – जून) में भारत की सरकारी तेल कंपनियों को कच्चे तेल का निर्यात करने वाला दूसरा बड़ा देश बन गया है, तेल आपूर्ति के मामले में उसने सउदी अरब को पीछे छोड़ दिया, इस तरह से ईरान ने सात साल पहले खोए अपने स्थान को एक बार फिर से प्राप्त कर लिया है।

 

 

अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए है। वहीं तेल निर्यात पर ईरान कई तरह की आकर्षक योजनाएं चला रहा है। जिसका भारतीय कंपनिया पूरा फायदा उठा रही हैं क्योंकि नवंबर से ईरान पर अमेरिकी प्रतिंबध प्रभावी हो जाएंगे। पिछले वित्त वर्ष में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने ईरान से आयात होने वाले कच्चे तेल में कटौती की थी |

 

 

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने सोमवार को संसद को बताया कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकारी कंपनियों की रिफाइनरीज ने सऊदी अरब की बजाए ईरान से ज्यादा तेल निर्यात किया। जिसकी वजह से सऊदी तीसरे नंबर पर और ईरान दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। ईरान के साथ चल रहे इस कारोबार में भारत के लिए असमंजस की स्थिति भी बनी हुई है क्योंकि ट्रंप प्रशासन ईरान से तेल आयात को कम करने और पूरी तरह से बंद करने के लिए नई दिल्ली पर दबाव बना रहा है।

 

 

अप्रैल से जून की अवधि के दौरान तेल कंपनियों ने ईरान से 56.70 लाख टन कच्चे तेल का आयात किया है। यह मात्रा सऊदी अरब से ज्यादा है। ईरान के साथ भारत के बढ़ते कारोबार के बीच दुविधा भी लगातार बढ़ रही है। ईरान से तेल निर्यात को खत्म करने के दबाव पर इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि हमारे पास पर्याप्त समय है। सूत्रों के अनुसार डेडलाइन से पहले ही भारत तेल निर्यात को कम कर देगा और दूसरे जरियों को तलाश लेगा।

 

 

ईरान के खिलाफ इस समय अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हैं। इसकी वजह से उसके साथ वित्तीय रास्ते और भुगतान के मार्ग बंद हो जाते हैं। अमेरिका ने 8 मई 2018 को ईरान के साथ हुए संयुक्त वृहद कार्य योजना वाले अंतरराष्ट्रीय समझौते से बाहर निकलने की घोषणा की थी इसके साथ ही कच्चे तेल का आयात करने सहित ईरान के साथ व्यापार करने वाली कंपनियों पर फिर से प्रतिबंध लगाने संबंधी आम पूछे जाने वाले कुछ सवाल भी जारी किए थे।

 

 

प्रधान ने हालांकि इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या सरकार ने तेल कंपनियों से ईरान से तेल आयात कम करने को कहा है। उन्होंने कहा, ‘भारतीय रिफाइनरियां ईरान सहित विभिन्न देशों में स्थित स्रोतों से कच्चे तेल का आयात करती हैं। इसमें तकनीकी और वाणिज्यिक बातों का ध्यान रखा जाता है।’

 

 

भारत की असल चुनौती तेहरान के साथ अपने वर्षों पुराने रिश्ते को बचाने और अफ-पाक नीति के तहत आने वाले चाबहार प्रॉजेक्ट से जुड़े वित्तीय/सामरिक हित हैं। आपको बता दें कि 2010-11 में ईरान सऊदी के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक था, लेकिन बाद में यह मुल्क सातवीं पोजिशन पर पहुंच गया। दरअसल तेहरान के न्यूक्लियर कार्यक्रमों पर लगाम लगाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे।

 

 

भारत ने अमेरिका द्वारा दी गई छूट की शर्तों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे ईरानी तेल के आयात को कम कर दिया। जुलाई 2015 में ईरान के साथ समझौता होने के बाद प्रतिबंध हटाए गए। इसके बाद भारत ने भी धीरे-धीरे ईरान से तेल आयात को बढ़ाया। इस बीच 2017-18 में भारत की सरकारी रिफाइनरियों ने आयात को कम किया।

 

 

भारतीय कंपनियों के समूह द्वारा फरजाद-बी गैस फील्ड खोजने के बाद ईरान इसका कॉन्ट्रैक्ट देने में लेटलतीफी कर रहा था, जिसके जवाब में ऐसा किया गया। अब एक बार फिर ईरान के साथ भारत का तेल रिश्ता समस्याओं से घिरा नजर आ रहा है। ओबामा के इतर ट्रंप ईरान को माफी देने के लिए मूड में बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे हैं।

रिलायंस इंडस्ट्रीज और रूस के रोजनेफ्ट के नेतृत्व में चल रही नयारा, देश की दो बड़ी प्राइवेट रिफाइनरियों ने ईरान से तेल आयात को बंद कर दिया है। तेल मंत्रालय ने सरकारी रिफाइनरियों से भी कहा है कि अगर इन प्रतिबंधों में भारत को छूट नहीं मिली तो वे भी तेल आयात के वैकल्पिक उपायों को तैयार रखें।