भोग की ओर जाना है या योग की ओर, … यह हमें तय करना है : डॉ राजेश मिश्र


डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
डॉ राजेश मिश्र नेचुरोपैथी चिकित्सा के जाने – माने विशेषज्ञ हैं और अब तक हजारों की संख्या में जटिल रोगियों को रोग मुक्त कर चुके हैं। डॉ० राजेश मिश्र की शास्त्रों में विशेष रूचि है और वह इस समय दर्शनशास्त्र पर प्रातः काल नित्य कक्षा ले रहे हैं । कक्षा के दौरान डॉ० मिश्र ने बताया की योग दर्शन का अपना अलग महत्व है।

डॉ० मिश्र कहते हैं कि यह सत्य है कि सांसारिक वस्तुओं के साथ हमारा संबंध नित्य रहने वाला नहीं है। इन विषय भोगों को अधिकाधिक भोग कर कोई व्यक्ति पूर्ण व स्थाई सुख प्राप्त नहीं कर सकता। उपर्युक्त सत्य के समान ही यह भी अटल सत्य है कि ईश्वर के साथ हमारा संबंध सदा से था , आज भी है और आगे भी रहेगा। इस संबंध का कभी विच्छेद नहीं हो सकता। ऐसे ईश्वर को ही प्राप्त करके मनुष्य पूर्ण सुखी हो सकता है अन्यथा नहीं।

शहीद उद्यान स्थित कायाकल्प केंद्र में 40 दिनों तक चली योग दर्शन की कक्षा के समापन पर नेचरोपैथ डॉ० राजेश मिश्र ने बताया कि वैदिक छह दर्शनों में योग दर्शन का अपना विशिष्ट स्थान है। इस दर्शन में योग का वास्तविक स्वरूप , योग का फल , योग के क्रियात्मक उपाय , योग के भेद और योग में उपस्थित होने वाले बाधकों का विस्तृत विवेचन किया है। डॉ० मिश्र ने बताया कि महर्षि पतंजलि द्वारा रचित ‘योगदर्शन’ के सूत्रों की संख्या 195 है जिसके 4 पाद हैं। प्रथम पाद में 51 सूत्र, द्वितीय और तृतीय पाद में 55-55 तथा चतुर्थ पाद में 34 सूत्र हैं। प्रथम पाद का नाम समाधि पाद , द्वितीय का नाम साधन पाद, तृतीय का नाम विभूति पाद और चतुर्थ का नाम कैवल्य पाद है।

डॉ० राजेश ने बताया ‘समाधि पाद’ में मुख्य रूप से समाधि तथा उसके भेदों का वर्णन किया गया है। साधन पाद में प्रारंभिक साधक के लिए योग के साधनों का वर्णन किया गया है। विभूति पाद में योग साधनों के अनुष्ठान से प्राप्त होने वाली विविध प्रकार की सिद्धियों का वर्णन किया गया है और चौथे पाद में कैवल्य (मोक्ष) के यथार्थ स्वरूप का वर्णन है। उन्होंने कहा भोग की ओर जाना है या योग की ओर , यह हमें तय करना होगा। डॉ० मिश्र ने बताया कि वे श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद परिव्राजक जी के निर्देशन में शास्त्रों का अध्ययन कर रहे हैं।