ये गांव कहलाता है कुवारी लड़कियों का गांव

इंटरनेशनल डेस्क ।

 नोइवा दो कोरडेएरो । इस कस्बे के महिला समुदाय होने की कहानी है पूरानी

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इस कस्बे की पहचान मजबूत महिला समुदाय की वजह से है। इसकी नींव मारिया सेनहोरिनहा डी लीमा ने रखी थी, जिन्हें कुछ वजहों से 1891 में अपने चर्च और घर से निकाल दिया गया था। 1940 में एनीसियो परेरा नाम के एक पादरी ने यहां के बढ़ते समुदाय को देखकर यहां एक चर्च की स्थापना की। इतना ही नहीं उसने यहां रहने वाले लोगों के लिए शराब न पीने, म्यूजिक न सुनने और बाल न कटवाने जैसे तरह-तरह के नियम कायदे बना दिए। 1995 में पादरी की मौत के बाद यहां की महिलाओं ने फैसला किया कि अब कभी किसी पुरुष के जरिए बनाए गए नियम-कायदों पर वो नहीं चलेंगी। तभी से यहां महिलाओं का वर्चस्व है।

ब्राजील का यह कस्बा महिलाओं के लिए किसी काम का नहीं है। यहां की महिलाएं एक अदद प्रेमी पाने के लिए तरस रही हैं। जब महिलाओं के अरमानों को कोई पूरा करने वाला न हो तो किस काम का गांव, शहर,कस्बा और वहां रहने वाले लोग। ब्राजील के नोइवा दो कोरडेएरो कस्बे में 600 महिलाएं हैं। इस गांव में खोजने पर एक अदद अविवाहित पुरूष का मिलना नामुमकिन है। शादी के लिए यहां कि लड़कियों की तलाश अधूरी है।

प्यार और शादी का सपना देख रही यहां की लड़कियां

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इस कस्बे की महिलाओं में ज्यादातर की उम्र 20 से 35 साल के बीच है। यहां रहने वाली नेल्मा फर्नांडिस ने बताया था कि कस्बे में शादीशुदा मर्द हैं या फिर कोई रिश्तेदार। हम अपने अरमानों के लिए किसके पास जाएं। कस्बे में रहने वाली लड़कियों का कहना है कि वो भी प्यार और शादी के सपना देखती हैं। हालांकि, वो इसके लिए कस्बा नहीं छोड़ना चाहती हैं। वो शादी के बाद भी यहीं रहना चाहती हैं। लड़कियों की चाहत है कि शादी के बाद लड़का उनके कस्बे में आकर उन्हीं के नियम-कायदों से रहे।

शादीशुदा महिलाओं के पति भी रहते हैं कस्बे से दूर

लड़कियों ने बताया कि कस्बे में रहने वाली कुछ महिलाएं शादीशुदा हैं, लेकिन उनके पति भी साथ नहीं रहते। ज्यादा महिलाओं के पति और 18 साल से बड़े बेटे काम के लिए कस्बे से दूर शहर में रहते हैं। यहां खेती-किसानी से लेकर बाकी सभी काम कस्बे की महिलाएं ही संभालती हैं। कम्युनिटी हॉल के लिए टीवी खरीदने से लेकर हर तरह का प्रोग्राम ये मिल-जुलकर करती हैं।

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