हम को सूरत से ही सीरत की झलक मिलती है, लाख परदे में छिपे चेहरा, महक मिलती है

हम को सूरत से ही सीरत की झलक मिलती है,

लाख  परदे में  छिपे  चेहरा,  महक  मिलती  है।

कभी  भूले  से  जो  आ  जाते  दरीचे के करीब,

डूबते  चाँद  को  सूरज  की  चमक  मिलती  हैं।

 

मेरे   महबूब   मुझे   अपनी   अदाएं  न   दिखा,

सांस रुक जाती है क़दमों  को बहक मिलती है।

इश्क़  वह  इश्क़  कहाँ जिस में न रुस्वाई मिले,

हर जगह तानों की तिशनों की झमक मिलती है।

 

final gajal

मयकदे  जा   के   सुकूं   ढूंढ   लिया  करता  है,

जिस को ख़ुद्दारी की थोड़ी सी भनक मिलती है।

बारिशें  आती  हैं  आ   कर  के  चली  जाती हैं,

आँहें  भरते  हुए   छप्पर  में   हनक  मिलती  है।

 

क्यों  भला  जाये गा  बाग़ात में  ‘ मेहदी ‘ बोलो,

घर के  गुलदस्ते से  जब प्यारी  गमक मिलती है।

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “