14 सालों से बिछड़े दो भाइयों के मिलन की ये है अद्भुत कथा

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
लंकाधिपति रावण का वध करने के बाद पुष्पक विमान से अयोध्या में जैसे ही प्रभु श्रीराम उतरे तो सामने भरत जी को गुरु वशिष्ठ आदि के अन्य मुनियों के साथ अपनी ओर आते देखा तो उन्होंने धनुष बाण पृथ्वी रखकर लक्ष्मण जी के साथ गुरु जी का चरण वंदन किया. गुरु जी ने भी दोनों भाइयों को उठाकर हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद देते हुए कुशलक्षेम पूछी तो श्रीराम ने कहा कि जिस पर आपकी दया होगी , वह तो सदैव कुशल ही रहेगा. सभी मुनियों और ब्राह्मणों से मिलकर मस्तक नवाने के बाद वे भरत जी की ओर मुड़े तो भरत जी ने उनके चरण पकड़ लिए. भरत जी उनके पैरों पर लेट गए और उठाने के बाद भी नहीं उठे. श्री राम ने उन्हें जबरन उठाया कर हृदय से लगाया तो सांवले रंग के श्री राम का रोम-रोम पुलकित हो खड़ा हो गया , नए कमल के समान नेत्रों से ऐसी अश्रुधारा बही की जल की बाढ़ ही आ गई.

श्रीराम के कुशलक्षेम पूछने पर भरत जी के बोल ही नहीं निकले-
कमल के समान नेत्रों से जल की धारा बहती ही रही. त्रिलोकी के स्वामी अपने छोटे भाई भरत जी को अत्यंत प्रेम से गले लगा कर मिल रहे हैं, वे कहते हैं भाई से मिलते हुए प्रभु का वर्णन कर पाना उनके वश में नहीं है, उस दृश्य की उपमा कही ही नहीं जा सकती है. मानों प्रेम और श्रृंगार शरीर धारण करके मिले और श्रेष्ठ शोभा को प्राप्त हो रहे हैं. कृपा के सागर श्री राम भरत जी से कुशलक्षेम पूछते हैं किंतु बड़े भाई से मिल कर आनंदित भरत जी के मुख से शब्द ही नहीं निकल पाए. इस दृश्य को देख कर शिवजी भी पार्वती जी से कहते हैं, कृपानिधान से मिलते हुए भरत जी को जो सुख प्राप्त हो रहा है, इसको तो सिर्फ वही जान सकता है जो उसे प्राप्त करता है.

चारो भाइयों के गले मिलने से हुआ विरह के दुख का नाश-
भरत जी ने प्रभु श्री राम के प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की तो कुछ देर बाद ही वह सहज होकर बोल पाए, उन्होंने कहा कि हे कोशलनाथ, आपने मुझे एक दुखी दास जानकर दर्शन दिए, इससे अब सब कुशल है. विरह समुद्र में डूबते हुए मुझको कृपानिधान ने हाथ पकड़ कर बचा लिया. भरत जी से मिलने के बाद प्रभु ने हर्षित हो कर शत्रुघ्न जी को हृदय से लगा लिया. इधर लक्ष्मण जी और भरत जी एक दूसरे गले मिले, लक्ष्मण जी ने शत्रुघ्न जी को भी गले से लगा लिया तो 14 वर्ष का विरह से उत्पन्न दुख का नाश हो गया। इसके बाद शत्रुघ्न जी सहित भरत जी ने सीता जी के चरणों में सिर नवा कर परम सुख प्राप्त किया.

प्रभु श्री राम को देख कर सभी अयोध्यावासी बहुत ही हर्षित हो गए और उनके सारे शोक मिट गए. सभी लोगों को मिलने के लिए आतुर देख कर शत्रुओं पर भी कृपालु श्री राम ने एक चमत्कार किया, वे असंख्य रूपों में प्रकट हो गए और हर किसी से यथायोग्य मिले, श्री रघुवीर ने कृपादृष्टि से देख कर सभी नर नारियों को शोक रहित कर दिया.