बढ़ते मौत के आकड़ो से चौके कम , सोचिये और जानिए वजह इसकी

शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

जिंदगी बहुत खूबसूरत है, पर कई ऐसे लोग हैं जो अपने हाथों से सांसों की डोर तोड़ लेते हैं। हम अक्सर ऐसी घटनाएं सुनते हैं और आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों से चौंकते हैं कि आखिर लोग ऐसा कैसे और क्यों करते हैं। लेकिन अगली बार जब आप ऐसी बात सुनें या आंकड़ों को देखें तो चौंकिए नहीं, सोचिए कि ये आंकड़े क्यों बढ़ रहे हैं, कैसे हम इन लोगों की मदद कर सकते हैं, क्योंकि आज ये आंकड़े हैं, लेकिन कल इनमें कोई जाना-पहचाना हो सकता है। इसलिए उनकी मदद कीजिए, क्योंकि उन्हें इसकी जरूरत है। इसी सोच से इस समस्या का समाधान निकलेगा।

भारत में आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 2018 के मुकाबले 2019 में 3.4 फीसदी बढ़ा है, तो दुर्घटना में मरने वालों का प्रतिशत 2.3 फीसदी बढ़ा है। यह आंकड़ा बता रहा है कि देश में आत्महत्या करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से जुटाए गए हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक , 2018 में कुल 1,34,516 लोगों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2019 में 1,39,123 लोगों ने खुदकुशी की। सबसे अधिक खुदकुशी के मामले महाराष्ट्र से आए हैं। महाराष्ट्र में 2019 में 18,916 लोगों ने आत्महत्या की। तमिलनाडु में 13,493 लोगों ने, 12,665 लोगों ने पश्चिम बंगाल में, 12,457 लोगों ने मध्य प्रदेश में और कर्नाटक में 11,288 लोगों ने अपने जीवन का ख़त्म कर लिया।

देश में की जाने वाली कुल आत्महत्याओं में महाराष्ट्र 13.6 फीसदी के साथ सब से ऊपर है। इसके बाद तमिलनाडु का 9.7 फीसदी, पश्चिम बंगाल का 9.1 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 9 फीसदी और कर्नाटक का 8.1 प्रतिशत का योगदान है। इन पांच राज्यों का कुल प्रतिशत 49.5 है। बाकी पचास फीसदी आत्महत्याएं अन्य 24 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में होती हैं। वहीं अधिक आबादी वाले राज्य (देश की आबादी की 16.9 फीसदी आबादी) उत्तर प्रदेश में आत्महत्या के मामले कम आए हैं। देश में हुई कुल आत्महत्याओं में इसका योगदान 3.9 प्रतिशत है। वहीं दुर्घटना की बात करें तो 2018 में 4,11,824 लोगों की दुर्घटना में मृत्यु हुई थी, तो 2019 में 4,21,104 लोगों का दुर्घटना की वजह से जिंदगी चली गई।

ये रही आत्महत्या की वजह

पारिवारिक समस्याएं और बीमारी आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह रही हैं। 2019 में हुई कुल आत्महत्याओं (1,39,123) में पारिवारिक समस्या के कारण 32.4 प्रतिशत और लोगो का बीमार होकर मरना भी कारण 17.1 प्रतिशत लोगों ने खुदकुशी की है। ड्रग एब्यूज/लत की वजह से 5.6 प्रतिशत, विवाह संबंधी दिक्कतों के कारण 5.5 प्रतिशत, प्रेम प्रसंग की वजह से 4.5 फीसदी, दिवालियापन और कर्ज की वजह से 4.2 फीसदी, परीक्षा में फेल होने और बेरोजगारी की वजह से 2 प्रतिशत, प्रोफेशनल और करियर की दिक्कतों के कारण 1.2 प्रतिशत और प्रॉपर्टी विवादों के कारण 1.1 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की।

महिलाओं के मुकाबले पुरुष अधिक करते हैं आत्महत्या 

महिलाओं के मुकाबले पुरुष भी अधिक आत्महत्या करते हैं। 2019 में 70.2 प्रतिशत पुरुषों ने और 29.8 फीसदी महिलाओं ने आत्महत्या की थी, जबकि 2018 में 68.5 फीसदी पुरुष और 31.5 फीसदी महिलाओं ने खुदकुशी की थी। महिलाओं की आत्महत्या की सबसे बड़ी वजहों में विवाह संबंधी विवाद, खासकर दहेज से जुड़े मामले, नपुंसकता आदि हैं। महिलाओं में सबसे अधिक आत्महत्या घरेलू महिलाओं ने की है। महिलाओं द्वारा की गई कुल खुदकुशी में 51.5 फीसदी गृहणियों का योगदान है। वहीं, बच्चों (18 साल से कम उम्र) में आत्महत्या के बड़े कारण पारिवारिक विवाद (2,468), परीक्षा में फेल होना (1,577), प्रेम प्रसंग (1,297) और बीमारी (923) हैं

इस पेशे से जुड़े लोग अधिक कर रहे आत्महत्या

2019 में कुल आत्महत्या के मामलों में सरकारी नौकरी से जुड़े 1.2 फीसदी, प्राइवेट सेक्टर के 6.3 फीसदी, पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजिंग के 1.7 प्रतिशत लोगों ने खुदकुशी की। छात्रों और बेरोजगारों की खुदकुशी का प्रतिशत क्रमश: 7.4 और 10.1 है। वहीं स्वरोजगार से जुड़े लोगों का इसमें 11.6 फीसद योगदान रहा। 5,957 किसानों और 4,324 खेतिहर मजदूरों ने 2019 में खुद की जीवन लीला का अंत कर लिया। पुरुषों में सबसे अधिक आत्महत्या रोजाना कमाई करने वालों (29,092), स्वरोजगार से जुड़े (14,319) और बेरोजगार लोगों (11,599) ने की। कुल 17 ट्रांसजेडर ने भी खुदकुशी की।

बचाव के लिए सहभागिता की जरूरत

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन साइंस के आकिफ मुस्तफा अपने शोधपत्र ‘बर्डन ऑफ सुसाइडल एंड एक्सीडेंटल मोर्टेलिटी इन इंडिया’ में लिखते हैं कि परीक्षा में फेल होना, बेरोजगारी, सामाजिक रुतबा, संपत्ति विवाद, गरीबी, प्रेम संबंध, शारीरिक प्रताड़ना आदि आत्महत्या के बड़े कारण होते हैं, जिन्हें रोका जा सकता है। भारत में आत्महत्या से बचाव के प्रोग्राम चलाए जाने की आवश्यकता है। मानसिक बीमारियां जैसे डिप्रेशन, ड्रग का इस्तेमाल, साइको, बेचैनी, पर्सनैलिटी डिसऑर्डर आदि भी आत्महत्या के बड़े फैक्टर्स होते हैं। आकिफ लिखते हैं कि मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 में मानसिक तौर पर बीमार लोगों के सुधार के लिए कई उपाय तय किए गए थे। इनमें ऐसे लोगों के लिए जो अपनी जान ले सकते हैं, उन्हें कस्टडी प्रदान करना औऱ मानसिक रोगियों के अधिकारों को संरक्षित करना आदि शामिल हैं।