कछुए की चाल से भी धीमी रफ्तार से बन रहा है जौनपुर का मेडिकल कॉलेज

संवाददाता सभापति यादव

रीडर टाइम्स न्यूज़

जौनपुर : शहीद उमानाथ सिंह मेडिकल कॉलेज का निर्माण कछुए की चाल से भी धीमी गति से हो रहा है। पांच सौ बेड के इस कॉलेज को बनाने के लिए वर्तमान में महज 24 मजदूर काम कर रहे हैं। डेडलाइन बीतने के दो वर्ष बाद भी महज 45 फीसदी बन सका यह कॉलेज इस रफ्तार से कितने वर्षों में पूरा हो पाएगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जिले की बेहद महत्वपूर्ण परियोजना होने के बाद भी इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधि मौन हैं। उन्हें न तो इस कॉलेज के शीघ्र बनने की चिंता है और न ही इसे चालू कराने में कोई रुचि। इसी का असर है कि युवाओं के लगातार आंदोलन के बाद भी किसी के कानों पर जूं नहीं रेंग रही। जौनपुर सहित आसपास के जिलों के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए पूर्ववर्ती सपा सरकार में मेडिकल कॉलेज की मंजूरी मिली थी।

सितंबर 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सिद्दीकपुर के बंद पड़े कताई मिल परिसर में इस कॉलेज की आधारशिला रखी। तब यह दावा किया गया था कि 554 करोड़ की लागत से पांच सौ बेड का यह मेडिकल कॉलेज जून 2018 तक बनकर तैयार हो जाएगा। राजकीय निर्माण निगम को कार्यदाई संस्था बनाते हुए धन भी अवमुक्त कर दिया गया। शुरुआती दौर में काम भी बहुत तेजी से हुआ, मगर कुछ वर्षों बाद ही राजनीतिक उपेक्षा का ऐसा ग्रहण लगा कि नाम बदले जाने के बाद भी यह परियोजना उससे ऊबर नहीं पाई है। आलम यह है कि डेडलाइन खत्म होने के दो वर्ष बाद भी 45 फीसदी ही काम पूरा हो पाया है। बार-बार नई डेडलाइन तय की जा रही है। शासन-प्रशासन के लोग निरीक्षण कर काम में तेजी लाने की हिदायतें दे रहे हैं। इन तमाम कवायदों के बाद भी स्थिति ढाक के तीन पात वाली ही बनी हुई है। लॉक डाउन के बाद स्थिति और बिगड़ गई है। फरवरी में यहां 70-80 मजदूर काम कर रहे थे।

लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को खाने के लाले पड़े तो वह घर चले गए। वह उन्हें वापस लाने की कोई जहमत नहीं उठा रहा। मौजूदा समय में सिर्फ 24-25 स्थानीय मजदूरों के भरोसे ही इस मेडिकल कॉलेज का निर्माण चल रहा है। काम की स्थिति पर गौर करें तो ओपीडी, प्रशासनिक भवन, मुख्य अस्पताल, हॉस्टल आदि का ढांचा ही खड़ा हो पाया है। बाहर और अंदर से फिनिशिंग का पूरा काम शेष है। दरवाजे-खिड़कियां आधे-अधूरे ही लगे हैं। प्लास्टर, सिलिंग और फर्श के काम भी काफी हद तक शेष हैं। काम की यह गति जिम्मेदारों की मंशा पर भी सवाल खड़े कर रही है। बजट का रोना रो रही कंपनी मेडिकल कॉलेज बनाने का जिम्मा राजकीय निर्माण निगम को सौंपा गया है। निगम ने इसका टेंडर टाटा कंपनी को दिया है। कंपनी के जिम्मेदारों का कहना है कि बजट न मिलने से काम को गति नहीं मिल पा रही।

निर्माण कार्य के लिए सामग्री की आपूर्ति करने वाली कई फर्मों का करोड़ों रुपये भुगतान बकाया है। मजदूरों का पैसा भी फंसा हुआ है। उनकी ओर से लगातार भुगतान के लिए दबाव दिया जा रहा है, मगर शासन से बजट न मिलने के कारण वह नहीं दे पा रहे। नाम न छापने की शर्त पर कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि शासन से जितनी धनराशि मिली है, उससे अधिक निर्माण में खर्च हो चुकी है। अब वह बिना बजट मिले अतिरिक्त धन खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं। वहीं निर्माण निगम के अफसरों का कहना है कि कंपनी का कोई भुगतान नहीं अटका है। जौनपुर मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति पांच वर्ष बश्वर मिली थी। तब से अब तक रेट में काफी अंतर आ चुका है। कार्य करा रही कंपनी ने एस्टीमेट रिवाइज करने की मांग की है। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। वहां से अनुमति मिलते ही काम में तेजी आएगी। वैसे अब यह परियोजना फिर से आजमगढ़ इकाई को दिया गया है। वह शुरू से ही इसे करा रहे हैं, लिहाजा उन्हें बेहतर जानकारी होने के नाते दोबारा से काम उनकी देखरेख में कराया जाएगा। रणविजय सिंह, परियोजना प्रबंधक, राजकीय निर्माण निगम इकाई, वाराणसी