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                               भारत में बढ़ रहा हैं बच्चो में अंधापन
                                Dec 09, 2020
                                                                
                               
                               
                                
शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
दुनिया के लिए हमारी आंखे खिड़की की तरह होती हैं, जिसके खुले रहने पर हम बाहर कुछ भी देख सकते हैं और इसमें कुछ भी खराबी या इसके किसी भी क्रिटिकल पार्ट के कमजोर होने से खासकर कम उम्र में, नॉर्मल ज़िंदगी जीने, दुखी रहने और दूसरों पर निर्भर होके जीने का कारण बन सकता है। जन्म के समय से लेकर बचपन तक और फिर जवानी तक, बच्चों की आंखों पर मां-बाप और पीडियाट्रिक्स का महत्वपूर्ण फोकस बन जाता है। संभवतः अनुमानों के मुताबिक भारत में अंधे बच्चों की संख्या 1.6 और 2 मिलियन के बीच है। हालांकि बच्चों में अंधापन सामान्य स्वास्थ्य और पोषण की कमी से होता है, इसके साथ ही जन्म के समय या जन्म के बाद बच्चों के स्वास्थ्य तथा पोषण में ढिलाई बरतने पर भी अंधापन होता है। बहुत सारी आंखों से सम्बंधित कंडीशन होती है, जो या तो जन्मजात होती है या फिर जन्म के बाद बीमारी होने पर होती है।
• बच्चों में अंधापन होने का कारण
ट्रेडिशनली कॉर्नियल क्लाउडिंग, स्कारिंग या डैमेज को भारत में बचपन के अंधेपन होने का सबसे बड़ा कारण माना गया है। 2000 के दशक की शुरुआत में हुई एक स्टडी में यह निष्कर्ष निकला था कि रिफ्रैक्टिव एरर्स की वजह से बचपन में अंधापन सबसे ज्यादा होता है, इसके बाद रेटिनल ओपेसिटी, कॉर्नियल ओपेसिटी, जन्मजात आंखों में समस्या होने और अंबेलोपिया की वजह से भी बचपन में अंधेपन की समस्या होती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि इस रिफ्रैक्टिव एरर्स का इलाज हो सकता है, फिर भी बच्चों में इसकी वजह से हुए अंधेपन के मामले कुल मामलों के एक तिहाई हैं।
विटामिन-ए की कमी जैसे रोकथाम योग्य कारणों के कारण हर 6 में से एक मामला और मोतियाबिंद के बाद मोतियाबिंद सर्जरी से अंधेपन के मामले सामने आते हैं। बाकी बचे बचपन के अंधेपन के मामले जन्मजात आंखो में डिसऑर्डर होने और रेटिना डिगनेरेशन की वजह से होते हैं। हाल ही में हुई एक स्टडी में यह भी पाया गया कि मायोपिया रिफ्रैक्टिव एरर से अंधेपन के एक तिहाई मामले थे। 6 में से एक केस रोकथाम की कमी जैसे कि विटामिन-ए की कमी और एंबीलोपिया पोस्ट-मोतियाबिंद सर्जरी होती है। बाकी के बचे बचपन में अंधेपन के केसेस जन्मजात आंखों में समस्या होने और रेटिनल डिगेनेरेशन की वजह से होते हैं।
• इसका इलाज और रोकथाम है मुमकिन
जीन से संबंधित ओकुलर कंडीशन जैसे कि माइक्रोफ़थाल्मोस और एनोफ़थाल्मोस का अभी तक कोई ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है, इन्ही की वजह से बच्चों में अंधापन होता है। रिफ्रैक्टिव एरर का इलाज किया जा सकता है और इसलिए अगर इस वजह से अंधेपन की किसी भी समस्या को रोका जा सकता है।
गंभीरता की डिग्री के आधार पर बच्चों के लिए करेक्टिव ग्लासेस (सुधारात्मक चश्मा) या लेंस का समय पर उपयोग करने से लगभग एक-तिहाई बच्चों में अंधेपन को रोकने की दिशा में थोड़ा असर पड़ता है। ठीक इसी तरह बच्चों में पोषण से सम्बंधित अंधेपन को टाला जा सकता है अगर बच्चे को विटामिन-डी की खुराक उसकी उम्र के अनुसार दी जाए। विटामिन-डी की कमी होने से कई आंखों की कंडीशन जैसे कि जीरोफथलमिया (आंसू पैदा करने में असमर्थता होने से कोर्निया और कंजंक्टिवा के गंभीर ड्राईनेस) से लेकर निक्टलोपिया (रतौंधी), केराटोमालेशिया ( कोरोना का नरम और क्लाउडिंग होना) से लेकर कॉर्निया का टूटना और स्थायी अंधापन हो सकता है।
• विटामिन-डी की कमी से आंखों में समस्या हो सकती है
इस फैक्ट के बारे में लोगों को कम पता है कि विटामिन-डी की कमी की वजह से बच्चों में संक्रामक खसरा हो सकता है। इससे खसरा केराटाइटिस हो सकता है। इस कंडीशन में जब बच्चे का विकास हो रहा होता है, तो उसके कोर्निया में एक इन्फेक्शन हो जाता है। इसकी वजह से आंसू ज्यादा बनने लग सकते हैं और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है। इन्फेक्शन से कॉर्नियल सूजन या निशान हो सकता है जो स्थायी अंधापन का कारण बन सकता है। दरअसल, वायरस न केवल रेटिना, बल्कि ब्लड वेसेल्स और ऑप्टिक नर्व को प्रभावित करते हुए आंख के बैक को इन्फ्लेम कर सकता है, जिससे रेटिनोपैथी और ऑप्टिक न्युरैटिस हो सकता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि गर्भावस्था के दौरान खसरा होने से पेट में पल रहे बच्चे में कॉर्नियल और रेटिनल कॉम्प्लिकेशन से आंखों की रोशनी खोने का खतरा बढ़ सकता है। यह जानकार अच्छा लगता है कि पिछले कुछ सालों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में खसरा होने में गिरावट देखी गयी है।
• इस समस्या का हल क्या है?
सबसे पहले पारिवारिक स्तर पर, मां-बाप बच्चों में आंख में विकार के शुरुआती लक्षणों की पहचान कर सकते हैं। यह ज्ञात है कि बच्चों की जन्म के समय अस्वाभाविक आंखें या फिर क्रॉस आंखें होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जन्म के बाद आंखों के विकास में थोड़ा समय लगता है। हालांकि, अगर क्रॉस आंखों में सुधार नहीं दिखता है, तो मां-बाप को फौरन बाल रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए। क्रॉस आंखों को चश्मे, एक्सरसाइज़ या फिर सर्जरी की मदद से ठीक किया जा सकता है।