बने हम सभ्य समाज ; झूटी शान के नाम पर बंद करे हत्यांए


शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

सभ्य समाज उसे माना जाता है, जहा पर नागरिकों में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो । हम अभी सभ्य समाज बनने की प्रक्रिया में शामिल ही हैं। की हमारे समाज के कुछ लोग आज भी मध्यकाल में जी रहे हैं। अपनी झूठी शान के लिए एक बार फिर “ऑनर किलिंग” की घटना को अंजाम दिया गया है।

दुर्भाग्य है कि , आज भी भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में जकड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के 28 साल के युवक का केवल इतना ही दोष था। कि उसने गांव की ही एक उच्च जाति की लड़की से प्रेम करने की हिम्मत की थी। देखा जाए तो यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी ऐसे कई युवकों को मौत के घाट उतारने की घटनाएं इस देश में होती रही हैं। कई राज्यों में ऐसे जोड़ों को मार दिया जाता है, जो अंतरजातीय विवाह करते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत वयस्कों को अपनी पसंद से जीवन साथी चुनने का अधिकार है। इसमें दखल देना संविधान के खिलाफ है।

जब दो वयस्क एक-दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत मान्यता प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अंतरजातीय विवाह को व्यक्ति की पसंद, उसके बुनियादी हक और आत्मसम्मान का अहम हिस्सा बताया है। कोर्ट के अनुसार, ‘किसी की पसंद को झूठी शान के नाम पर कुचलना उसको शारीरिक प्रताड़ना देने के बराबर बताया है।’ दुर्भाग्य है कि , आज भी भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में जकड़ा हुआ है। सामाजिक दबाव के चलते कई परिजन अपने बच्चों की खुशियों का गला घोंट देते हैं और उन्हें अपनी ही जाति में विवाह करने के लिए मजबूर करते हैं, जिसके बाद कई अप्रिय घटनाएं सामने आती हैं।

हालांकि माता-पिता के भी कुछ अरमान होते हैं। जन्म से पहले ही अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य के सपने संजोने लगते हैं। इसलिए उनके बेहतर कल के लिए उनकी चिंता लाजिमी है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रेम विवाह सफलता की गारंटी नहीं है। तकरीबन 82 प्रतिशत से ज्यादा ऐसे युगल हैं, जिन्होंने अंतरजातीय प्रेम विवाह किया और इनमें से लगभग 70 प्रतिशत जोड़े अलग हो गए। उन्होंने तलाक ले लिया। इस तरह की रिपोर्ट जब माता-पिता पढ़ते हैं तो उनका चिंतित होना स्वाभाविक है। इसलिए वे उनके लिए योग्य वर की तलाश में जी जान लगा देते हैं, जिससे उनके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके। अभिभावकों की इच्छा होती है कि बच्चे यदि अपनी पसंद से विवाह करना चाहते हैं तो वे उन्हें अपने फैसले में शामिल करें। ऐसा इसलिए सोचते हैं, क्योंकि वे उनके माता-पिता हैं और उनसे बेहतर उनके लिए कोई भी नहीं सोच सकता है। इसलिए बच्चों द्वारा भी माता-पिता को अपने भरोसे में लिया जाना चाहिए, ताकि वे ऐसे शर्मनाक कृत्य को अंजाम देने की कल्पना भी न कर सकें।