हिन्दू राजाओं द्वारा प्रभावी ब्राह्मणों ; व क्षत्रियों के …सहयोग से की गयी भव्य पूजा ,

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
ऐतिहासिक व पौराणिक झंडा मेला प्राचीन काल से हिन्दुओं के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए हिन्दू राजाओं द्वारा प्रभावी ब्राह्मणों व क्षत्रियों के सहयोग से शुरू किया गया था। जो गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। मुस्लिम भाइयों द्वारा झंडों पर फूल वर्षा कर स्वागत किया जाता है। अंग्रेजी शासनकाल में देवी- देवताओं की पूजा में अवरोध उत्पन्न किया जाता था। इस पर मवई ग्राम के ठाकुर बलवंत सिंह ने लगभग 50 स्वयं सेवकों को एकत्र किया और फिर लंबी लाठियों में आत्म रक्षा के लिए भाला लगाकर लाल झंडा बांध दिया।

इसके बाद भाद्रपद आखिरी मंगलवार को सभी स्वयं सेवक कस्बा के इमलिया बाग चौराहा पर एकत्र हुए और फिर बजरंगबली की जय जयकार करते हुए शोभायात्रा निकाली। सायं यह शोभायात्रा महावीरन पहुंची, यहां पूजा अर्चना कर प्रसाद वितरित किया गया। इस दौरान किसी भी अंग्रेज अधिकारी ने अवरोध नहीं डाला। जिसे लोगों ने बजरंगबली का प्रताप बताया। तभी से झंडे मेले की शुरुआत हुई। मेले के दिन प्रात: काल बजरंगबली की विग्रह की विधिवत पूजा अर्चना होती है, और फिर झंडों के पूजन के बाद शोभायात्रा निकाली जाती है।

जो अपने निर्धारित मार्गो से होती हुई वापस मंदिर पहुंचती है। जिस स्थान से यह झंडा उठता है, वह शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। 18 वर्ष पहले जब शैलेश अग्निहोत्री ने झंडा मेला कमेटी का पदभार संभाला था, तब से वह लगातार झंडा मेला को भव्य रूप देने के लिए प्रयास कर रहे हैं। कई वर्षों से यह झंडा मेला हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक बन गया है। मुस्लिम भाई एक जगह एकत्र होकर झंडों पर पुष्प वर्षा करते है और मेला कमेटी के अध्यक्ष को फूल मालाओं से लाद देते हैं।

इस प्रकार यह झंडा मेला गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बन चुका है। इस वर्ष झंडा मेला व मुहर्रम एक ही दिन पड़ रहा है। प्रशासन दोनों समुदायों से कई बार वार्ता कर मार्ग व समय का निर्धारण किया है। मंगलवार को झंडा मेले की शुरुआत हो चुकी है। मंगलवार को सैकड़ों झंडों व आकर्षक झांकियों के साथ शोभायात्रा निकाली जाएगी।