महंगे पेट्रोल-डीजल और भारी बारिश का असर , थाली से गायब हो गईं महंगी सब्जियां


डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
देश में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे है। वहीं सब्जियों , कुकिंग ऑयल और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों ने भी आम आदमी की कमर तोड़ दी है। रविवार को व्यापार के आंकड़ों से पता चला कि प्याज और टमाटर की कीमतें दिल्ली सहित शहरी क्षेत्रों में बढ़ रही हैं। इसका कारण ईंधन की कीमतों में वृद्धि और भारी बारिश के कारण फसलों को नुकसान पहुंचना है। उच्चर वैश्विक कीमतों के कारण खाद्य तेल की कीमतें महंगी बनी हुई हैं। केंद्र सरकार ने 13 अक्टूबर को राज्यों को पत्र लिखा है। कहा कि मार्च 2022 तक आयात शुल्क में कटौती के बाद तेलों की कीमतों में कमी लाई जाए। कमजोर मौसम के दौरान कीमतों में संभावित उछाल से निपटने के लिए सरकार ने 200,000 टन प्याज का रिकॉर्ड भंडार बनाया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुछ खाद्य पदार्थों की कीमतों में मौसम की बड़ी भूमिका होती है। प्याज उनमें से एक है। इसकी दरें अक्सर मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती है। यह सभी के मासिक बजट को प्रभावित करती है। सिंतबर के दौरान प्याज की कीमतों में वृद्धि होती है। यह करीब तीन माह के कमजोर मौसम की शुरुआत मानी जाती है। जब पिछली फसलों के स्टॉक खत्म हो जाते हैं। पिछले आंकड़ों से पता चलता है। आमतौर पर ताजा फसल सर्दियों में आती है।

टमाटर की कीमतें 60-65 रुपए प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई हैं। दिल्ली , पटना , कोलकाता और मुंबई में प्याज 50 से 55 रुपए में बिक रहा है। कृषि उपज बाजार समितियों के मूल्य आंकड़ों के मुताबिक 20-25 रुपए की वृद्धि हुई है। नासिक स्थित सोलंकी इंडिया लिमिटेड के अरुण सोलंकी ने बताया कि कर्नाटक और महाराष्ट्र में बरसात ने आपूर्ति लाइनों को प्रभावित किया है। वह प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा , सब्जियों की कीमतों में 10-15 रुपए की बढोतरी हुई है , क्योंकि आपूर्ति धीमी हो गई है।

गाजीपुर थोक सब्जी और फल के थोक विक्रेता एसपी गुप्ता ने कहा कि बैक-एंड आपूर्तिकर्ताओं का कहना है यह गर्मी में भारी बारिश के कारण है। महाराष्ट्र , कर्नाटक और आंध्र प्रदेश प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य हैं। जिसका कुल उत्पादन 75 % से अधिक है। इन सभी प्रदेशों में गर्मियों में फसल में देरी या नुकसान हुआ है। क्रिसिल की ऑन द ग्राउंड रिपोर्ट में कहा गया कि जून-सितंबर के मानसून के दौरान प्याज के बीज के प्रत्यारोपण में कमी आई है। इससे फसल के परिपक्व होने में देरी हो रही है। ग्रीष्मकालीन प्याज भारत की सालाना आपूर्ति का 30 प्रतिशत से अधिक नहीं है।