ए सी कमरे में बैठ कर चला रहे है यूनियन ; मुकेश अग्रवाल अपने ही करीबियों से घिरे ,

रिपोर्ट शरद द्विवेदी
रीडर टाइम्स न्यूज़

: – भट्टे के मालिक आत्महत्या करने को मजबूर

आज का प्रकरण उस उद्योग से जुड़ा हुआ है जिस उद्योग ने लाक डाउन में सरकार का साथ दिया व लगभग हरदोई के तीस हजार मजदूरों की रोजीरोटी इन उद्योग से चलती है हम बात कर रहे है। ईट भट्ठे (ब्रिक फील्ड) उद्योग की।और सबसे बड़ी बात जिस यूनियन के अध्यक्ष कद्दावर नेता नरेश अग्रवाल के सगे छोटे भाई मुकेश अग्रवाल हो उस यूनियन के सदस्य,पदाधिकारी आत्महत्या करने जैसी दशा में हो तो बेहद ही शर्म की बात है। यूनियन अध्यक्ष की इस उदाशीनता के चलते उनके ही क़रीबियों ने उन पर निशाना साध लिया है व उनके खिलाफ बगावत का  बिगुल फूंक दिया है।

दरअसल ओम ब्रिक फील्ड साहुल पुर के मालिक व कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष स्वर्गीय ओम नारायण त्रिवेदी के पुत्र संजय त्रिवेदी ने अवगत कराया कि सरकार की अनदेखी के चलते हम ईट भट्ठे के ब्यापारी/मालिक आत्महत्या करने की दशा में आ गए है आपको बताते चले कि दिनांक 19/02/2021 को गोरखपुर के जिलाधिकारी के विजयेंद्र पण्डियन ने अपने कार्यालय के पत्रांक संख्या 1166 में समस्त  उपजिलाधिकारी , समस्त क्षेत्राधिकारी व समस्त  थानाध्यक्ष को आदेश किया है कि जिन भट्ठे मालिको द्वारा विनिमय शुल्क जमा किया गया है व जांच के समय चालान की छाया प्रति प्रस्तुत की जाती है उन भट्ठे मालिको के लोथन मिट्टी खनन में अनावश्यक रूप से अवरोध उत्पन्न न किया जाए गोरखपुर के जिलाधिकारी ने यह आदेश ईट भट्टा समिति द्वारा खनन की समस्या हेतु कराए गए पत्र को संज्ञान में लेकर किया गया। वही दूसरी ओर हरदोई के ईट भट्टा यूनियन के अध्यक्ष मुकेश अग्रवाल को अवगत कराने के बाद भी भट्टा मालिको की समस्या के निराकरण हेतु कोई कदम नही उठाया गया और संजय त्रिवेदी द्वारा सदर विधायक नितिन अग्रवाल को समस्या से अवगत कराने के बाद भी विधायक जी ने कोई प्रभावी कदम नही उठाया जबकि आये दिन विधायक जी जनता की समस्या सुनते है लेकिन उनको अपने ही करीबियों की समस्या नज़र नही आ रही है इसका क्या कारण है यह बड़ा सवाल है।

संजय त्रिवेदी अपने यूनियन के अध्यक्ष की इस अनदेखी पर बेहद नाराज है और अलग यूनियन बनाने की बात कर रहे है।संजय त्रिवेदी का दर्द भी लाजमी है क्यो की शायद ही हरदोई का कोई ऐसा भट्टा मालिक हो जिसकी ई0 सी0, जिलापरिषद का टैक्स , प्रदूषण सुचारू रूप से न हो व जिस पर बैंक का पचास/साठ लाख रुपये कर्जा न हो और अगर मिट्टी का खनन नही होगा तो ईट कहा से बनेगी और अगर ईट नही बनेगी तो आखिर भट्टे मालिक सरकार का कर्ज का पैसा कहा से देगे।सबसे बड़ा सवाल यह है की मिट्टी खनन हेतु जब सभी औपचारिकताये पूरी है तो आखिर ईंट बनाने हेतु खनन क्यो नही करने दिया जा रहा है। जब भट्ठे ही नही चलेंगे तो आखिर उन तीस हजार मजदूरों के घर का चूल्हा कैसे जलेगा जिन मजदूरों की रोजी रोटी ही इन भट्टो से चलती हो।ऐसा नही है कि जिले के आलाधिकारी इस समस्या से परिचित नही है कई भट्टे मालिक आलाधिकारियों से मिल भी चुके है लेकिन समस्या का निराकरण अभी तक नही हो सका है। अब देखना यह है कि भट्ठे मालिको को कब इस समस्या से निजात मिलता है और कब तक ए0 सी0 कमरों से इस यूनियन को चलाया जाता रहेगा या एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश अग्रवाल जमीन पर उतर कर कुछ करेगे भी यह बड़ा सवाल है ।