हजारों साल पहले बने शैल चित्र आज भी स्पष्ट नजर आते हैं इन गुफाओं में

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भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी  12,000 साल पुरानी है। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। भीमबेटका मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित हैं। इसके दक्षिण से सतपुड़ा की पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं। यह स्थल आदिमानव द्वारा बनाये गये शैल चित्रों और गुफाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां बनाये गये चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्य पाषाण काल के समय का माना जाता है।

भीमबेटका-शैलाश्रय

भीमबेटका में प्राचीन किले

राजधानी भोपाल के लगभग 45 किमी दूर भीम बेठिका या भीम बेटका यह आदिम मनुष्यों का पुरापाषाणिक , आवासीय स्थल है। रातापानी वन्य अभ्यारण में स्थित इन प्राग-ऐतिहासिक शिलाओं में निर्मित गुफाओं व प्राकृतिक शैलाश्रयों में हजारों साल पहले मानव के पाषाणयुगीन पूर्वज रहा करते थे। भीमबेटका आदि-मानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है।

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यहां सैकड़ों शैलाश्रय हैं जिनमें लगभग 500 से अधिक शैलाश्रय चित्रों से सजाए गए हैं। सबसे अनोखे तो यहां शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान है जिनका निर्माण एक लाख वर्ष पुराना हुआ था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने भीमबेटका को 1990 में राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया था। इसके बाद 2003 में ‘यूनेस्को’ ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। माना जाता है कि यह स्थल महाभारत के चरित्र भीम से संबंधित है। यही वजह है कि इस स्थल का नाम भीमबेटका पड़ा। भीमबेटका का उल्लेख पहली बार भारतीय पुरातात्विक रिकॉर्ड में 1888 में बुद्धिस्ट साइट के तौर पर आया है।

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1957 में की गई खोज

इसके बाद वी. एस. वाकंकर एक बार रेल से भोपाल जा रहे थे तब उन्होंने कुछ पहाड़ियों को इस रूप में देखा जैसा कि उन्होंने स्पेन और फ्रांस में देखा था। वे इस क्षेत्र में पुरातत्ववेत्ताओं की टीम के साथ आये और 1957 में कई पुरापाषाणिक गुफाओं की खोज की। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र पाये गये। पूर्व पाषाण काल से मध्य पाषाण काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।

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हालांकि अब यह महत्वपूर्ण धरोहर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। यहां के शैल चित्रों में प्रमुख रूप से सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, युद्ध, दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े चित्र और पशु-पक्षियों के चित्र उकेरे गये हैं। इन शैल चित्रों में रंगों का भी प्रयोग किया गया था जिनमें से प्रमुख रूप से गेरुआ, लाल और सफेद रंग और कहीं-कहीं पीले और हरे रंग भी प्रयोग किये गये हैं। इनके अतिरिक्त भीमबेटका में प्राचीन किले की दीवार, लघु स्तूप, भवन, शुंग-गुप्तकालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी पाए गये हैं। यहां की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई हैं जो पूर्व-ऐतिहासिक कलाकारों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हुआ करती थीं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12,000 साल पुराना माना जाता है। भीमबेटका गुफाओं की खासियत यह है कि हजारों साल पहले बने शैल चित्र आज भी स्पष्ट नजर आते हैं।