असंवैधानिक तरीके से निरस्त किए गए धनगर जाति के नामांकन

संवाददाता मनोज वैश्य
रीडर टाइम्स न्यूज

जिलाधिकारी सीतापुर द्वारा अवैधानिक तरीके से , प्रदत्त शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए धनगर जाति के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्रो को निष्प्रभावी करते हुए ग्राम प्रधान एवं क्षेत्र पंचायत के नामांकन को गैर कानूनी तरीके से निरस्त करवाने के कारण उनके विरुद्ध आरक्षण  अधिनियम 1994 के उल्लंघन सहित अन्य कई शासनादेशों का उल्लंघन एवं सरकारी सेवा आचरण नियमावली का उल्लंघन तथा चुनावी धांधली की शिकायत।

धनगर अनुसूचित जाति के व्यक्तियों को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जिलाधिकारी सीतापुर द्वारा अवैधानिक तरीके से के नामांकन को निरस्त करवाएं जाने की संभावना पहले से थी जिसके कारण उन्होंने इस संबंध में एक पत्र जिलाधिकारी को पहले से ही दे दिया था लेकिन  जिलाधिकारी ने उस पत्र को कोई तवज्जो नहीं दी और अपने मन मुताबिक आनन-फानन में जिला जाति सत्यापन समिति की बैठक बुलाने का दिखावा करते हुए बिना संबंधित व्यक्तियों को नोटिस जारी किए, उन्हें उनका पक्ष रखने का मौका दिए ( जो कि न्याय की मूल अवधारणा  प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है) , शिकायत का कन्फर्मेशन एवं परीक्षण किए तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी स्पष्टीकरण शासनादेश संख्या 207 सीएम /26 -3-2018 दिनांक 24 जनवरी 2019,  उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा याचिका संख्या 40462/2009,12436/2007, 345 20/2006 इत्यादि में दिए गए आदेशों की अवहेलना करते हुए कुछ ही मिनटों में धनगर अनुसूचित जाति के चुनाव में भाग लेेे रहे सभी व्यक्तियों के जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिए। उन्होंने निर्वाचन अधिकारी को अपना अवैधानिक आदेश भेज कर धनगर अनुसूचित जाति के व्यक्तियों को चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने से रोक दिया जो कि लोकतंत्र के विरुद्ध एक साजिश है ।

जिलाधिकारी सीतापुर द्वारा किया गया यह घृणित कार्य ना सिर्फ चुनावी धांधली है बल्कि उनकी जानकारी एवं सत्यनिष्ठा को अवश्य ही संदेहपूर्ण बनाता है और जिस व्यक्ति की सत्य निष्ठा संदेहपूर्ण होती है वह सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य (unbecoming govt servant) माना जाता है। उनके इस घृणित कृत्य के लिए धनगर समाज उनको कभी माफ नहीं करेगा और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति अनुसूचित  जनजाति पिछड़ी जाति आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 5 (1) के तहत कार्यवाही एवं सजा करवाए जाने की पुरजोर कोशिश करेगा।

ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने यह घृणित कार्य किसी राजनीतिक दबाव मै किया है। वह अपने राजनीतिक आकाओं की चापलूसी में इतने अंधे हो चुके थे कि उन्होंने सभी नियम कानूनों को को ताक पर रख दिया और ना तो उन्होंने संबंधित व्यक्तियों को उनका पक्ष रखने की मोहलत दी और ना ही अपने अवैधानिक आदेश की प्रतिलिपि तक संबंधित व्यक्तियों को उपलब्ध कराई। एसडीएम से बात करने पर उन्होंनेे कहा कि आपको जहां जाना है वहां जाइए। उनको इस संबंध में निम्नलिखित प्रस्तुत बिंदुओं (जिन से उनको पहले से ही अवगत कराया गया था) पर विचार अवश्य करना चाहिए था ।

1.  Dhangar (धनगर) अनुसूचित जाति संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 के अनुसार राष्ट्रपति से स्वीकृति के बाद 11 अगस्त 1950 से भारत सरकार के गजट प्रकाशन के आधार पर पूरे उत्तर प्रदेश के लिए मान्य है जिसको लिस्ट में से हटाने की क्षमता सिर्फ राष्ट्रपति महोदय को संसद में प्रस्ताव पारित करवाने के बाद है किसी अधिकारी या न्यायालय (चाहे उच्चतम न्यायालय ही क्यों ना हो)को नहीं है।

2.  हाल ही में पारित उच्च न्यायालय इलाहाबाद रिट संख्या 27724/2018 में दिए गए आदेश के अनुसार अनुसूचित जाति का व्यक्ति जन्म से अनुसूचित जाति का होता है इसलिए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जीवन में एक बार ही बनता है और उसका किसी विशेष प्रोफॉर्मा पर होना आवश्यक नहीं है।

3. उच्च न्यायालय इलाहाबाद में रिट संख्या 40462/2006, 12436/2007,34520/2006 में दिए गए आदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित स्पष्टीकरण आदेश संख्या 207 सीएम/26 -3-2018 दिनांक 24 जनवरी 2019 के अनुसार धनगर जाति गडरिया समुदाय की उपजाति के तौर पर पहचानी गई है जिसको रोटी बेटी हुक्का पानी संबंधों के आधार पर गडरिया समुदाय की धनगर/निखर उपजाति की जांच करके पहचाना जा सकता है इसके लिए किसी अभिलेखीय साक्ष्य का होना आवश्यक नहीं है ।

बल्कि जिन व्यक्तियों के पूर्व में गडरिया जाति के जाति प्रमाण पत्र भी बने हुए हैं । उनको भी स्थलीय सत्यापन जांच पड़ताल के आधार पर गडरिया समुदाय की दो उपजातियों धनगर निखर की जांच करके धनगर उपजाति के व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र दिया जा सकता है जो कि संविधान अनुच्छेद 341 के अनुसार पूरी तरह से वैध है। इसका मतलब है कि धनगर जाति के जाति प्रमाण पत्र को इस आधार पर निरस्त या निष्प्रभावी नहीं माना जा सकता कि उस व्यक्ति का पूर्व में गडरिया का जाति प्रमाण पत्र बना हुआ है या उसके अभिलेखीय साक्ष्य गडरिया या बघेल/पाल के हैं।

4. उच्च न्यायालय इलाहाबाद में रिट संख्या 40462/2006, 12436/2007,34520/2006 में दिए गए आदेश (जिसमें कहा गया है कि धनगर जाति गडरिया की 2 उपजातियों धनगर, निखर में से है और इसी आधार पर मथुरा के व्यक्तियों के धनगर जाति के प्रमाण पत्र को भी वैध माना गया) किसी भी न्यायालय में विचाराधीन नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित स्पष्टीकरण आदेश संख्या 207 सीएम/26-3-2018 दिनांक 24 जनवरी 2019 किसी भी न्यायालय से स्थगित नहीं है।

5. उच्च न्यायालय इलाहाबाद में कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के बाद राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार से स्वीकृत आदेश संख्या रिट/86/71-4-2021 दिनांक 5 मार्च 2021 का अवलोकन करें जिसके माध्यम से राज्यपाल से स्वीकृति के बाद विशेष सचिव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर अवगत कराया गया है । कि Dhangar (धनगर) अनुसूचित जाति के छात्र अजय कुमार को एमबीबीएस में पुनः प्रवेश दिया जाए।इसका मतलब है । कि Dhangar (धनगर) अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्रों पर किसी भी प्रकार की कोई भी रोक किसी भी न्यायालय द्वारा नहीं है। इस तथ्य को जिला अधिकारी फिरोजाबाद ने भी व्यक्तिगत मुलाकात में माना है और इस आधार पर तहसीलदार टूंडला को 163 धनगर जाति प्रमाणपत्रों की शिकायत की जांच करने के लिए 24 जनवरी 2019 को जारी स्पष्टीकरण आदेश के बिंदु संख्या दो एवं तीन के अनुसार गडरिया समुदाय की उपजाति धनगर निखर की जांच के आधार पर जांच करने के लिए आदेशित किया है।

6. शासनादेश संख्या 100/2020/1741/26-3-2020 दिनांक 30 जुलाई 2020 के अनुसार जाति प्रमाण पत्र को निरस्त/निष्प्रभावी करने की क्षमता सिर्फ जिला/मंडल या राज्य जाति सत्यापन समिति में ही है कोई भी एकल अधिकारी (चाहे वह जिलाधिकारी खुद भी क्यों ना हो) किसी जाति प्रमाण पत्र को निरस्त नहीं कर सकते हैं फिर भी अगर कोई अधिकारी ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही हो सकती है । और उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति पिछड़ी जाति आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 5 (1) के तहत कार्यवाही एवं सजा भी हो सकती है।

धनगर समाज के संगठन अखिल भारतीय धनगर महासंघ ने इस समाचार पत्र के के माध्यम से सभी संबंधित उच्चअधिकारियों एवं मुख्यमंत्री कार्यालय से अनुरोध किया है कि कृपया उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारी सीतापुर के विरुद्ध शासनादेश संख्या 100 दिनांक 30 जुलाई 2020 , शासनादेश संख्या 207 सी एम/26-3-2018 दिनांक 24 जनवरी 2019 एवं उत्तर प्रदेश (अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , पिछड़ी जाति) आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 5 (1) के तहत जांच करके कार्यवाही करे क्योंकि जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश उच्च न्यायालय इलाहाबाद में रिट संख्या 40462/2006, 12436/2007,34520/2006 में दिए गए आदेश, उच्च न्यायालय इलाहाबाद में कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट के बाद राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार से स्वीकृत आदेश संख्या रिट/86/71-4-2021 दिनांक 5 मार्च 2021 तथा अन्य कई शासनादेशों का उल्लंघन है। और उनकी जानकारी एवं सत्यनिष्ठा पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है इसलिए वह सरकारी सेवा आचरण नियमावली के भी दोषी माने जा सकते हैं।

इसके अतिरिक्त जिलाधिकारी ने चुनाव को प्रभावित करने के लिए धनगर जाति संबंधित व्यक्तियों के नामांकन अवैधानिक आदेश के द्वारा निरस्त करवा करके चुनावी धांधली का काम किया है इसलिए वह चुनाव नियमावली के उल्लंघन के भी दोषी मानी जा सकते हैं अतः राज्य चुनाव आयोग को भी उनके विरुद्ध सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।