कहानी चुड़ैलों के एक गांव की

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  जानिए एक ऐसे गाँव के बारे में , जो चुड़ैलों के गांव के नाम से जाना जाता है । अगर नहीं सुना तो बता दें कि अफ्रीकी देश घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जो चुड़ैलों के गांव के नाम से पॉप्युलर  हैं। इन गांवों में ऐसी महिलाएं रहती हैं, जिन्हें डायन या चुड़ैल कहकर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। हाल ही में म्यूनिख की फोटोग्राफर एन क्रिस्टिने वोएहर्ल ने इनके कुछ फोटोज क्लिक किए हैं। क्रिस्टिने कहती हैं कि चुड़ैलों के गांव में ये औरतें झोपड़ियां बना कर रहती हैं और आस-पास के खेतों में काम कर खाने का इंतजाम करती हैं।

चुड़ैल बनते ही छोड़ देती हैं गांव, जीती हैं गुमनाम जिंदगी

चुड़ैल घोषित की जा चुकी महिलाएं अगर जिंदा बच जाती हैं तो उन्हें अपना घर छोड़कर घाना में मौजूद चुड़ैलों के गांवों में जाना होता है। घाना में इस तरह के 6 गांव हैं, जिनमें गांबागा और गुशीगू प्रमुख हैं। गांव-परिवार छोड़कर चुड़ैलों के गांव में रहने वाली ये महिलाएं अपनी पहचान खो चुकी होती हैं। फैमिली मेम्बर्स भी इनसे संपर्क नहीं करते हैं। ऐसे में, ये समाज से अलग-थलग रहती हैं। इनकी संख्या 1500 के आसपास है . बता दें कि अफ्रीकी देश घाना के कई गांवों में लोग अंधविश्वास के कारण महिलाओं को चुड़ैल घोषित कर देते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि वहां पर हर साल हजारों महिलाओं को चुड़ैल बताकर जिंदा जला दिया जाता है या फिर उन्हें खूब प्रताड़ित किया जाता है।  इन महिलाओं को चुड़ैल बनाने के पीछे भी अजीबोगरीब कारण होते हैं, जिनके बारे में सुनकर हैरत होती है। सांप काटने से किसी की मौत , किसी व्यक्ति के नदी में डूबकर मर जाने की वजह से कई औरतों को चुड़ैल घोषित कर दिया गया।

 15 वीं शताब्दी में हारांगुल गांव से हुई थी शुरुआत डायन प्रथा की

इसी के साथ आपको एक ऐसे गाँव की कहानी बताएँगे जिसके बारे में माना जाता है कि वही पर आज से 500 साल पूर्व काले जादू के बल पर औरतों के डायन बनने की शुरुआत हुई थी। इस लेख को आगे लिखने से पूर्व हम यह स्पष्ट कर देना चाहते है की  हम किसी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करते है बस हम आपको एक मिथक से परिचित करवाना चाहते है।  पूरे भारत में खासतौर पर बिहार, छत्तीसगढ़  और झारखण्ड में डायन के नाम पर कमजोर महिलाओं पर बेइंतिहा जुल्म किये जाते है और कई बार तो जान से मार भी दिया जाता है। यह  कहानी महाराष्ट्र के लातूर जिले में स्थित हारांगुल गांव ही है वो खास गांव जहां के बारे में माना जाता है कि यहीं से काले जादू की सबसे क्लिष्ट और खतरनाक परंपरा डायन प्रथा की शुरूआत हुई थी। वैसे तो इस मामले में बंगाल के काले जादू का भी उल्लेख मिलता है मगर माना जाता है कि डायन प्रथा की वास्तविक शुरुआत इसी गांव से हुई थी।

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ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी में पहली बार यह प्रथा इस गांव से शुरू हुई। तब से लेकर आजतक कोई चैन से नहीं सो पाया। दरअसल डायन प्रथा के यहां शुरू होने से काले जादू के बल पर आम महिलाओं के डायनों में परिवर्तित हो जाने के बाद इस गांव की पहचान हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई। पहले एक महिला डायन बनी। फिर कुछ और देखते  ही देखते गांव में डायनों की टोली का निवास हो गया। शुरू में तो भोले-भाले गांव वालों को इस सब के बारे में कुछ समझ न आया पर जब इन डायनों का साया यहां गहराने लगा तब गांव वालों को इस बात का एहसास हुआ कि वे किस बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं। डायनों ने अब शिकार करना शुरू कर दिया। पहले तो उन्होंने अपने घरों को निशाना बनाया। फिर देखते-देखते पूरे गांव को ही उसने अपनी गिरफ्त में कैद कर लिया।

जवान लड़के डायनों के पेड़ के आस-पास मृत लटके पाए जाने लगे। इसके पीछे सच्चाई सामने आई कि डायनों ने गांव के इन नौजवान कुंआरे लड़कों को पहले अपने प्रेमजाल में फांसा, उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर उनका खून चूस कर अपनी प्यास मिटाई। साथ ही उनके रक्त का इस्तेमाल तांत्रिक सिद्धियों के लिए भी किया गया।  ये सब होने के बाद गांव वालों का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने डायनों को पेड़ों में बांघकर जिंदा जलाना शुरू कर दिया। मरते-मरते इन डायनों ने कहा कि वे लौटकर आएंगी और जो अपना बदला पूरा करेंगी। इस घटना को हुए सैकड़ों साल हो गए हैं पर आज भी इस गांव में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो वर्जित हैं। इसके पीछे मान्यता है कि अगर इन दिशा निर्देशओं का पालन किसी ने नहीं किया तो ये डायन वापस आ जाएंगी। इसी वजह से इस गांव में आज भी पेड़ों पर कील ठोंकना, पेशाब करना, थूकना या रात को पेड़ों के पास सोना वर्जित है।

गांव में आज भी मान्यता है कि रात में इन डायनों की आत्माएं लोगों को आकर्षित करने की कोशिश करती हैं। अब वे पहले जितनी ताकतवर तो नहीं रहीं कि सीधे तौर पर किसी को नुकसान पहुंचा सकें पर जो कोई भी इनके द्वारा डाले गए डोरे में फंस जाता है उसका बड़ा ही बुरा हष्र होता है।