मुकद्दस रमजान में मस्जिदों में तराबी का सिलसिला शुरू

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रिपोर्टर:- नफीस अहमद 

बिलग्राम (हरदोई):– रमजान अकीदत का महीना कहा जाता है अकीदतमंद इस पाक महीने में रोजा रखकर ऊपरवाले से बरकत की दुआ करते हैं माना जाता है कि रोजा रखने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस्लाम में रमजान का महिना साल के सबसे पवित्र महलों में से एक है पैगंबर मोहम्मद ने उपदेश दिया कि जब रमजान का महीना शुरू होता है तो स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं नर्क के द्वार बंद हो जाते हैं और शैतान बधे होते हैं।दुनिया भर के मुसलमानों का मानना है।कि इस पवित्र महीने के दौरान अल्लाह ने कुरान की पहली आयत पैगंबर मोहम्मद को भेंट की थी।उस रात को रात अरबी में द नाइट ऑफ पवार या लैलतुल कद्र के नाम से जाना जाता है रोजा इस्लाम का आधारिक स्तंभ है और इसका पालन करना सभी मुसलमानों के लिए जरूरी इस महीने को रोजा अल्लाह के साथ रिश्ते को मजबूत करने के लिए जाना जाता है।इस दौरान नमाज दान और उदारता की भावना जैसी चीजें इस महीने को और भी पवित्र बना देती है।(अरबी में सोम) इस्लामी विश्वास के पांच प्रमुख स्तंभों में से एक है। इसके अलावा नमाज (सलात) अपनी आमदनी का कुछ प्रतिशत दान करना है।

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(जकात) तीर्थ यात्रियों को मक्का हज और अंत में इस्लाम में भरोसा जताना (शाहदाह) को काफी अहमियत दी जाती है। रमजान का रोजा सुबह से शाम तक रखा जाता है और इसे शरीर और आत्मा दोनों को पवित्र रखने के लिए भी जाना जाता है ।यही वह समय होता है ।जब मुसलमानों को अल्लाह के करीब होने की भावना महसूस होती है और इस दौरान उन्हें तमाम भौतिकवादी सुकून से बचाना होता है।यह रोजा इस्लामिक संस्कृति में एक पवित्र रिश्ता है ।जो मुस्लिमों में आध्यात्मिकता की भावना को बढ़ावा देती है कुछ लोगों से जानकारी करने पर पत्रकारों को बताया सुबह की अजान से शाम ढलने तक लोग खाने पीने धूंरपान और संभोग से दूर रहते हैं ।पूरे महीने रमजान के दौरान मुस्लिम लोग सुबह से शाम ढलने तक रोजा रखते हैं|

सही मायने में यह आध्यात्मिक अनुशासन का समय है इस दौरान अल्लाह की पनाह में जाना नमाज करना दान देना और कुरान की आयतों में डूब जाने की बात आम हो जाती है रमजान खुशी और उत्सव का समय है जो कि पूरे एक महीने तक चलता है।रमजान में रोजे के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक को नियत कहा जाता है। जिसका अर्थ है इरादा यह बताता है कि जो रमजान में रोजा रख रहे हैं ।उन्हें केवल भोजन से दूर नहीं रहना चाहिए उन्हें नियत पर अमल करना होता है ऐसा कहा गया है।कि एक मुसलमान को वह रखने के दौरान उसके दिल में यह बात होनी चाहिए कि वह अल्लाह के करीब है। इस दौरान किसी भी कारण रोजेदार को भावना गलत नहीं होनी चाहिए इन्तेजार को अल्लाह की इबादत में डूब जाना चाहिए। रमजान के पवित्र महीने में रोजेदार के इरादे को काफी अहमियत दी जाती है ।रमजान का महीना मुस्लिम धर्म में शामिल सबसे पवित्र महीना में है ।पूरे महीने रोजा रखना और अल्लाह की पनाह में रहने के बाद ईद उल फितर का दिन आता है ।मुसलमानों के लिए ईद उल जुहा का दिन खास होता है।इस मौके पर सर्वभौमिक भाईचारे का संदेश दिया जाता है।