मुस्लिम महिलाएं करवाचौथ पर मिया के लिए रखती हैं रोजा, चांद को देख कर नमाज पढ़ती है

बेशक वे महिलाएं हिंदू धर्म से ताल्लुक नहीं रखतीं लेकिन मुस्लिम होने के बावजूद करवाचौथ पर अपने शौहर की सलामती के लिए रोजा रखती हैं और चांद के दीदार के साथ नमाज पढ़कर रोजा खोलती हैं। साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल हैं ये मुस्लिम परिवारों की महिलाएं। राजधानी लखनऊ में सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्यौहारों को मिल-जुलकर मनाते हैं।

होली, ईद, बकरीद, दिवाली, क्रिसमस, लोहड़ी या रक्षाबंधन तो जैसे यहां की साझा संस्कृति का हिस्सा बन गए हैं। लेकिन करवाचौथ जैसा परंपरागत हिंदू पर्व भी यहां के कई मुस्लिम परिवारों में लंबे समय से मनाया जाता रहा है। हां, तरीका थोड़ा अलग होता है मगर उद्देश्य एक।

आज हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं राजधानी के कुछ ऐसे ही मुस्लिम परिवारों से जहां करवाचौथ के दिन ख्वातीन अपने शौहर की सलामती और लंबी उम्र के लिए रोजा रखती हैं और शाम को चांद के दीदार के साथ नमाज अदा कर रोजा खोलती हैं।

प्रेम का दूसरा नाम है कुर्बानी

अली सरदार जाफरी एक पर्सनैलिटी ट्रेनर, शिक्षक और उर्दू शायर हैं और उनकी पत्नी मुनव्वर फातिमा जैदी एक व्यवसायी होने के साथ ही सफल गृहिणी भी हैं। राजधानी के सरफराजगंज मोहल्ले में रहने वाले यह दंपती करवाचौथ का पर्व पूरी अकीदत के साथ मनाते हैं। मुनव्वर फातिमा ने बताया कि इस बार वे थोड़ी बीमार जरूर हैं लेकिन फिर भी हर बार की तरह अपने शौहर की सलामती के लिए करवाचौथ पर रोजा रखेंगी।

भारत में सभी त्यौहारों का सम्मान

पुराने लखनऊ के निवासी अकील अब्बास शिक्षक हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग का संचालन करते हैं। उनकी पत्नी तमन्ना भी शिक्षिका हैं। अकील बताते हैं कि पूरे विश्व के साथ देश भी तेजी से बदल रहा है।

शिक्षा के प्रसार के साथ दकियानूसी सोच से लोग बाहर निकल रहे हैं। बताते हैं कि वे प्रोग्रेसिव सोच वाले व्यक्ति हैं। अकील और तमन्ना दोनों का मानना है कि भगवान या अल्लाह की ओर से सभी त्यौहार सभी के लिए बने हैं और लोगों को मिल-जुलकर भाईचारे के साथ रहना चाहिए।

सभी धर्मों के त्यौहारों में छिपा खुशहाली और भलाई का संदेश

शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी फराज अली और उनकी पत्नी माहरूख जाफर के लिए करवाचौथ का त्यौहार बहुत खास है। फराज जहां मुजफ्फरनगर के मूल निवासी हैं तो माहरूख जाफर लखनऊ के नवाबी खानदान से ताल्लुक रखती हैं। वे नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की बेटी हैं और इल्म-ओ-हुनर इंटरनेशनल के जरिए शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम कर रही हैं।

फराज और माहरूख दोनों का मानना है कि सभी त्यौहार भलाई और खुशहाली का संदेश देते हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों।

फराज ने बताया कि करवाचौथ पर अपने शौहर की सलामती के लिए रोजा रखने का फैसला माहरूख का था जिस पर मुझे कभी कोई आपत्ति नहीं हुई बल्कि मैं तो यह चाहता हूं कि सरकारी व गैर सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस तरह के सामूहिक आयोजन कराएं तो शायद समाज में और भी सकारात्मक संदेश जाएगा। समाज के सभी लोग एक-दूसरे से मुतासिर होंगे और भाईचारा बढ़ेगा।

औरत की पूरी दुनिया होता है शौहर

मुफ्तीगंज हुसैनाबाद निवासी दीदार हुसैन व्यापारी हैं तो उनकी पत्नी नगमा का भी बुटीक का बिजनेस है। नगमा काफी समय से करवाचौथ पर रोजा रखती चली आ रही हैं। नगमा कहती हैं कि औरत की पूरी दुनिया उसका शौहर होता है। वे मोहर्रम के अय्यामे अजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रहती हैं। साथ ही करवाचौथ भी पूरी अकीदत के साथ मनाती हैं।

नगमा का कहना है कि शौहर का मर्तबा इस्लाम में भी काफी बुलंद है जिसे खुश रखने के लिए दुनिया और आखिरत दोनों सुधरती हैं। दीदार हुसैन बताते हैं कि नगमा मेरी सलामती के लिए करवाचौथ पर रोजा रखती है, यह मेरे लिए फख्र की बात है। वे कहते हैं कि सभी धर्मों में इंसानियत और त्यौहारों में खुशहाली का पैगाम दिया गया है, हमें इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है।