रीडर टाइम्स डेस्क
पुरी की रथ यात्रा की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होता कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म जाति या देश का रथ खींच सकता है …

पुरी की जगन्नाथ यात्रा का आज से शुभारंभ होने जा रहा है जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जिस धरती पर बैकुंठ कहा जाता है हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पूरी आते हैं। इस दिन भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल और भव्यरथो पर बिठाकर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है। हालांकि इस महापर्व के कई खास चरण होते हैं जो तकरीबन 12 दिन तक चलते हैं इस बार यहां महापर्व 27 जून से शुरू होगा और इसका समापन 8 जुलाई को होगा।
सोने की झाड़ू से होती है सफाई –
रथ यात्रा से पहले सोने के हत्थे वाली झाड़ू से सफाई की जाती मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्यक्ति इस झाड़ू से सफाई नहीं कर सकता। इस अनुष्ठान में सिर्फ राजाओं के वंशज ही भाग लेते हैं सोना बहुमूल्य शुभ और इस धातु से बनी झाड़ू के रास्ते की सफाई करने को सुभिता के प्रति के रूप में देखा जाता है मान्यता है कि ऐसा करके प्रभु जगन्नाथ भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के प्रति आभार जताया जाता है। यह जताया जाता है कि भक्त अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ प्रभु के चरणों में अर्पित करने के लिए तैयार है। साथ ही उनके रास्ते को पूर्ण रूप से स्वस्थ और शुद्ध किया जाता है।
कैसे हुई रथ यात्रा की शुरुआत –
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पीछे पौराणिक कहानी है भगवान जगन्नाथ को भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप माना गया है जब भगवान श्री कृष्ण को देहांत हुआ तो उनकी अस्थिए समुद्र में विसर्जित कर दी गई। इस समय उड़ीसा के राजा को सपना आया कि समुद्र में एक पवित्र लकड़ी का टुकड़ा बहकर आएगा। जिसे भगवान के रूप में स्थापित करना है तब राजा इंद्रघुम्न ने उस लकड़ी से भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति बनवाई कहा जाता है कि भगवान की मूर्ति बनाने के लिए खुद देव शिल्पी विश्वकर्मा आए विश्वकर्मा ने राजा के सामने शर्त रखी। कि बंद कमरे में मूर्तियां बनाएंगे मूर्ति बनने तक अंदर कोई नहीं जाएगा। राजा ने इस शर्त को मान लिया एक दिन राजा को कमरे के अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो वह अंदर चले जाएं तब से भगवान की मूर्तियां अधूरी राजा ने अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में स्थापित कर दिया कहा जाता है। कि उस समय भविष्यवाणी हुई थी भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि मझुरा जाएंगे तब राजा इंद्रघुम्न ने आषाढ़ शुक्ल द्विदिया के दिन भगवान के उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की तब से रथ यात्रा की परंपरा चली आ रही है।
रथ यात्रा का धार्मिक महत्व –
जगन्नाथ रथ यात्रा को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और पूर्ण दायक माना गया है मानता है कि इस यात्रा में भाग लेने या रथ को खींचने से व्यक्ति के समस्त पापों का नष्ट हो जाता है रस साथ ही रथ यात्रा में शामिल होने का पूर्ण सहयोगियों के बराबर होता है इसलिए हर साल इस भव्य उत्सव में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।