मायावती ने बिछाई चुनावी बिसात ; ब्राह्मणों पर लगाया दांव

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

1- सभी भाईचारा समितियों को किया भंग
2- ब्राह्मणों को जिम्मेदार पदों पर बिठाने की हो रही कवायद

लखनऊ : बसपा सुप्रीमो मायावती आने वाले विधानसभा चुनावों की बिसात पर मोहरों की चाल को अभी से जमाने में लग गई हैं | इसी के तहत उन्होंने सभी भाईचारा समितियों के गठन के तुरंत बाद ही भंग कर दिया है और अब पार्टी के संगठन में ब्राह्मणों को तरजीह देते हुए महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करने की कवायद शुरू कर दी है |

बहुजन समाज पार्टी में संगठन के प्रमुख पदों पर अधिकतर अनुसूचित और पिछड़े समाज के लोगों का ही बोलबाला रहा है | और बसपा अपने संगठन से जुड़े कार्यों में हमेशा बेहद संजीदगी और सतर्कता बरतती रही है तो जाहिर है कि पार्टी मुखिया के विश्वासपात्र लोग ही संगठन के पदों पर सुशोभित होते रहे हैं| अब पहली बार भंग भाईचारा समितियों के ब्राह्मण ,छत्रिय ,मुस्लिम और पिछड़े नेता सेक्टर व मंडल की मूल संगठन में शामिल किए जा रहे हैं | पार्टी मुखिया ने अपर कास्ट के पूर्व मंत्रियों व कद्दावर नेताओं को मंडलों में मुख्य जोन  कोऑर्डिनेटर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है |

सूत्रों के अनुसार बसपा पर संगठन में सिर्फ अनुसूचित और पिछड़ों को ही जिम्मेदारी दिए जाने के आरोप लगते रहे हैं | किसी भी और जाति को संगठन में पद मिलना लगभग असंभव ही माना जाता है लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर मायावती किसी भी तरह के आरोप प्रत्यारोप के पचड़े से खुद को दूर रखते हुए खालिस राजनीति करके विजय श्री अपने नाम करना चाहती हैं | इसीलिए बसपा मौजूदा राजनीतिक माहौल से “असंतुष्टओं” को पार्टी में शामिल करके और ब्राह्मणों को संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर बिठाकर ब्राह्मणों की वोट बैंक को अपने नाम करना चाहती हैं और कमोवेश मायावती का यह फार्मूला 2007 में करिश्मा भी दिखा चुका है | इसी रणनीति के तहत पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्र को मिर्जापुर मंडल और पूर्व एमएलसी ओपी त्रिपाठी को देवीपाटन मंडल का नया चीफ कोआर्डिनेटर बनाया गया है | इसी तरह वीरेंद्र पांडे और अरुण पाठक को क्रमश: गोरखपुर मंडल और आजमगढ़ मंडल की जिम्मेदारी दी गई है |

इसी क्रम में ब्राह्मणों को अलग-अलग महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने का कार्य पार्टी संगठन द्वारा किया जा रहा है | सूत्रों के अनुसार ब्राह्मणों का एक बड़ा धड़ा योगी सरकार में ब्राह्मणों की उपेक्षा के चलते नाराज चल रहा है और प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर भी ब्राह्मणों के उत्पीड़न का मुद्दा भी अभी गर्म है तो मौजूदा राजनीतिक समीकरणों का फायदा बसपा को मिल सकता है |
ऐसे में मायावती मिले हुए मौके को गंवाना नहीं चाहती हैं |