‘पैतृक संपत्ति’ को लेकर ‘सुप्रीम कोर्ट’ के दो अहम फैसले ,

संवाददाता रजनीश कुमार पाण्डेय
रीडर टाइम्स न्यूज़
1- विरासत की सम्पत्ति पर बेटी का अधिकार अन्य से ज्यादा
2- उत्तराधिकार रहित जायदाद मूल हस्तांतरक को लौटेगी
3- जागरूक नागरिक उज्ज्वल भविष्य भारत का प्रतापसिंह 
1 बेटी का हक सबसे पहले उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक अहम फैसले में कहा कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर आया है जो हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं को संपत्ति अधिकारों से संबंधित था।

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि वसीयत के बिना मृत किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति चाहे वह स्व-अर्जित संपत्ति हो या पारिवारिक संपत्ति के विभाजन में मिली हो, उसका उत्तराधिकारियों के बीच वितरण होगा। पीठ ने इसके साथ ही कहा कि ऐसे पुरुष हिंदू की बेटी अपने अन्य संबंधियों (जैसे मृत पिता के भाइयों के बेटे/बेटियों) के साथ वरीयता में संपत्ति की उत्तराधिकारी होने की हकदार होगी।

पीठ किसी अन्य कानूनी उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में बेटी को अपने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति को लेने के अधिकार से संबंधित कानूनी मुद्दे पर गौर कर रही थी। न्यायमूर्ति मुरारी ने पीठ के लिए 51 पृष्ठों का फैसला लिखते हुए इस सवाल पर भी गौर किया कि क्या ऐसी संपत्ति पिता की मृत्यु के बाद बेटी को मिलेगी जिनकी वसीयत तैयार किए बिना मृत्यु हो गयी और उनका कोई अन्य कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो।

2 संतानविहीन महिला की संपत्ति पुनः मूल स्त्रोत को वापस-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संतानविहीन हिंदू महिला की मृत्यु होने पर विरासत में मिली संपत्ति स्रोत के पास वापस चली जाएगी। जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने विभाजन के मुकदमे (पार्टिसन सूट) के फैसले में कहा है कि यदि एक हिंदू महिला की मौत बिना किसी संतान हो जाती है तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों के पास जाएगी, जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति उसके पति के वारिसों के पास जाएगी।

शीर्ष अदालत ने अपने इस फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या की है। अदालत ने कहा है कि इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य संपत्ति के अधिकारों के संबंध में पुरुष और महिला के बीच पूर्ण समानता स्थापित करना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिनियम विरासत की एकसमान और व्यापक प्रणाली निर्धारित करता है और यह मिताक्षरा और दयाभाग स्कूल द्वारा शासित व्यक्तियों पर भी और मुरुमकट्टयम, अलियासंतन और नंबूदरी कानूनों द्वारा पूर्व में शासित लोगों पर भी लागू होता है। यह अधिनियम हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो किसी भी रूप में धर्म से हिंदू है, जिसमें वीरशैव (लिंगायत) या ब्रह्म समाज अथवा आर्य समाज के अनुयायी शामिल हैं। यहां तक कि बौद्ध, जैन या सिख धर्म के लोगों पर भी यह लागू होता है।

“अरुणाचल गौंडर के कानूनी वारिसों की अपील पर कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दुर्भाग्य से, किसी भी अदालत ने तय कानूनों की व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया।”

अदालत के सामने थे ये सवाल-
मौजूदा मामले में अदालत ने पाया कि विचाराधीन संपत्ति निश्चित रूप से मारप्पा गौंडर की स्व-अर्जित संपत्ति थी। अपीलकर्ता द्वारा उठाया गया प्रश्न यह था कि क्या स्वर्गीय गौंडर की एकमात्र जीवित पुत्री कुपेयी अम्मल, संपत्ति की उत्तराधिकारी होगी और संपत्ति उत्तरजीविता के कानून द्वारा हस्तांतरित नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या एकमात्र बेटी अपने पिता की विभिन्न संपत्ति की उत्तराधिकारी है (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अधिनियमन से पहले)। एक अन्य प्रश्न ऐसी बेटी की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के संबंध में था (जो 1956 के अधिनियम के लागू होने के बाद मरी थी)।

बेटी का अधिकार सुस्पष्ट-
पहले प्रश्न के संबंध में, शीर्ष अदालत ने प्रथागत हिंदू कानून और न्यायिक घोषणाओं का हवाला देते हुए कहा कि एक विधवा या बेटी का स्व-अर्जित संपत्ति या एक हिंदू पुरुष की वारिसाना संपत्ति के विभाजन में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार न केवल पुराने प्रथागत हिंदू कानून के तहत बल्कि विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के तहत भी अच्छी तरह मान्यता प्राप्त है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 और 15 का हवाला –
वहीं अन्य मुद्दे पर पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 और 15 का हवाला दिया। पीट ने कहा है कि यदि एक हिंदू महिला बिना किसी संतान के मर जाती है, तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के वारिसों के पास जाएगी जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति के वारिस के पास चली जाएगी। वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि कुपेयी अम्मल की मृत्यु के बाद 1967 में सूट संपत्तियों का उत्तराधिकार खोला गया। इसलिए 1956 का अधिनियम लागू होगा और इस तरह रामासामी गौंडर की बेटी भी अपने पिता की प्रथम श्रेणी वारिस होने के नाते परैत सूट संपत्तियों में पांचवें हिस्से की हकदार होंगी।