रीडर टाइम्स डेस्क
पति और बेटों को खोया क्लर्क की नौकरी की संघर्षों को हराकर साधारण सी एक आदिवासी लड़की बनी देश के राष्ट्रपति। मेरा जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिले के एक आदिवासी गांव में हुआ। घर में बिजली नहीं और गांव का स्कूल दूसरी कक्षा तक ही था। तो मैं पढ़ने के लिए रोज दूसरे गांव पैदल जाती थी ….

कॉलेज की डिग्री हासिल करने वाली मैं अपने गांव की पहली लड़की बनी लोगों ने कहा इतना पढ़ लिख कर क्या करेगी लेकिन मेरे लिए शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं थी आत्मनिर्भर बनने की पहली सीढ़ी थी। करियर की शुरुआत एक सरकारी क्लर्क की नौकरी से हुई। फिर एक स्कूल में बिना वेतन गरीब बच्चों को पढ़ने लगी। मैं चाहती थी कि आदिवासी बच्चे भी सपने देखना सीखे। समाज में बेहतर बदलाव लाने के उद्देश्य से मैं राजनीति में कदम रखा। व्यवस्था बदलने की ठान ली और 1997 में मैं पार्षद बनी फिर विधायक और उड़ीसा सरकार में मंत्री भी।
2007 में मुझे सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार मिला लोगों ने मुझे नेता कहा लेकिन मैं खुद को सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक मानती रही। 2015 में मैं झारखंड के राज्यपाल बनी वहां आदिवासी भूमि कानून के खिलाफ एक सरकारी प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि मेरा जमीर साथ नहीं दे रहा था।
इसी दौरान जिंदगी ने सबसे बड़ी परीक्षा ली 3 साल में पति और दोनों बेटे दुनिया से चल गए। मेरा जैसा कोई सहारा ना रहा लेकिन मैं खुद को टूटने नहीं दिया। अपनी बेटी के साथ मजबूती से जीने का फैसला किया। ध्यान और आत्मचिंतन से मुझे शांति और सुकून मिला मैंने अपने दुख को ताकत में बदला और देश की सेवा की मेरी रहा और भी साफ होती गई।
2022 में देश ने मुझे राष्ट्रपति चुनाव में बनी भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति दूसरी महिला राष्ट्रपति और सबसे युवा राष्ट्रपति जो आजाद भारत में जन्मी और देश की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंची। मेरी कहानी बस यही बताती है कि जीवन में संघर्ष आपको गिरने नहीं मजबूत बनाने आते हैं। और अगर आप हारी नहीं तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती।