रीडर टाइम्स डेस्क
मथुरा 27 जून / गोवर्धन पर्वत जिसे गिरिराज भी कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। यह उस कालखंड का महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसकी लाखों भक्त परिक्रमा करते हैं। चार महीने का क्षेत्र संन्यास पूरा करके नेचरोपैथ डॉ. राजेश मिश्र ने अपने सहयोगियों के साथ गिरिराज गोवर्धन पर्वत पर यज्ञ किया। संध्या-हवन करने के बाद उन्होंने कहा कि 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर प्रयागराज (कुम्भ) में उन्होंने यज्ञ किया था और उसी दिन वापस आकर क्षेत्र संन्यास ले लिया था। ठीक चार महीने बाद वे मथुरा-वृंदावन में गोवर्धन पर्वत पर यज्ञ करने के लिए निकले।

उन्होंने कहा कि वे पर्यावरण संरक्षण के लिए अयोध्या, काशी, प्रयागराज, चित्रकूट, नैमिषारण्य में यज्ञ कर चुके हैं। कहा गोवर्धन पर्वत पर यज्ञ करने की इच्छा भी पूरी हो गई है। उन्होंने कहा कि यह यज्ञ पर्यावरण संरक्षण और लोक कल्याण के लिए किया गया। आगे कहा कि यहां भगवान श्री कृष्ण के चरण पड़े थे। वे ग्वाल-बालों के साथ यहां गोचारण करते थे। यहां आध्यात्मिक तरंगें हैं।

इस स्थान पर जो भी जप, यज्ञ व ध्यान करेगा उसे आनन्द की प्राप्ति होगी। डॉक्टर मिश्र ने कहा कि तीर्थों पर जाकर यज्ञ व ध्यान करने सभी का कल्याण होता है। शास्त्रों में भी नदी के किनारे, नदियों के संगम पर तथा पर्वत पर यज्ञ करने का विधान है। वे गायत्री महापुरश्चरण साधना कर रहे हैं, इसलिए पांच-छह प्रहर से अधिक समय तक बाहर नहीं रह सकते। डॉ सरल कुमार, डॉ अभिषेक पाण्डेय, श्रीओम पाण्डेय, मनोज मिश्र, गोविन्द गुप्ता, मुदित त्रिपाठी ने यज्ञ में आहुतियां डालीं और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया।