उपसभापति चुनाव के नतीजे ने फिर से, राहुल गांधी की राजनितिक क्षमता पर खड़े किये सवाल

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राज्यसभा के नवनिर्वाचित उपसभापति हरिवंश के सम्मान में सभापति एम. वेंकैया नायडू ने आज भोज का आयोजन किया है। राज्यसभा के उपसभापति चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की राजनीतिक क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं | आम आदमी पार्टी ने खुलकर ये कह दिया है कि वो कांग्रेस के पक्ष में मतदान देने के लिए तैयार थे लेकिन राहुल ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को एक फोन कॉल करना ज़रूरी नहीं समझा, बीजेपी के खिलाफ 2019 में राष्ट्रीय स्तर के महागठबंधन की बात कर रही कांग्रेस उस बीजेडी तक को नहीं साध पायी जो ओडिशा विधानसभा चुनाव बीजेपी के ही खिलाफ लड़ने जा रही है |

 

 

बता दें कि 41 साल से डिप्टी चेयरमैन का ये पद कांग्रेस के पास रहा था | यदि कांग्रेस ने राज्यसभा उपसभापति पद के चुनाव में अपने किसी सहयोगी दल से किसी को उम्मीदवार बनाया होता तो विपक्ष के उम्मीदवार को अधिक वोट मिल सकते थे। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राजग के उम्मीदवार की जीत भाजपा के खिलाफ उनकी एकता के प्रयासों के लिए झटका नहीं है।

 

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विपक्ष ने हालांकि चुनाव में एक मजबूत उम्मीदवार उतारा, लेकिन संसद के गलियारों में असंतोष के सुर जरूर सुनाई दिए। कुछ नेताओं ने सवाल किया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आम आदमी पार्टी जैसे दलों से संपर्क क्यों नहीं किया जो समर्थन दे सकती थी, जैसे कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजग उम्मीवार के लिए समर्थन जुटाने के वास्ते बीजद और टीआरएस के नेताओं से बात की।

 

वहीं, बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक ने जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार से मित्रता दिखाते हुए उनकी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन करने का निर्णय लिया | उन्होंने इसके लिए जेपी की विचारधारा का अनुयायी होने का हवाला दिया | कई दलों ने अप्रत्यक्ष रूप से एनडीए के उपसभापति उम्मीदवार हरिवंश को समर्थन किया | स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि कांग्रेस की इच्छा के बावजूद उसका कोई सहयोगी दल अपना उम्मीदवार देने को तैयार नहीं हुआ और अंतत: कांग्रेस को अपना उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को ही मैदान में उतारना पड़ा |

 

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एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश को 125 वोट मिले, जबकि यूपीए के उम्मीदवार हरिप्रसाद को 105 वोट मिले | बीजद व के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने हरिवंश का समर्थन किया, वहीं, बीजेपी से गठबंधन तोड़ चुकी महबूबा मुफ्ती की पीडीपी व अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सदन से अनुपस्थित रही |

 

 

बीजेडी के 9 और टीआरएस के 6, आप के 3 सदस्यों को अपने पाले में न कर पाना कांग्रेस या कहें तो महागठबंधन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई, आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह पिछले दो दिनों तक लगातार यही कहते रहे कि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में अगर कांग्रेस को हमारा वोट चाहिए, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हमारे राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल से बात करनी होगी | बहरहाल न राहुल ने फोन किया और न आप के राज्यसभा सांसद चुनाव में शामिल हुए |

 

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दूसरी तरफ बीजेपी ने जेडीयू के उम्मीदवार को मैदान में उतारकर ये संदेश दिया कि एनडीए में बाकी दलों की भी एहमियत है | जेडीयू उम्मीदवार होने के चलते नाराज़ चल रहे टीआरएस, बीजेडी और शिवसेना को साधने में मदद मिली | बीजेडी के लिए एनडीए के पक्ष में मतदान करना इसलिए और भी आसान हो गया क्योंकि अब वो विधानसभा चुनावों में सवाल उठने पर ये कह सकती है कि उन्होंने जेडीयू का समर्थन किया था | बीजेपी का नहीं. उधर कांग्रेस पहले लगातार कह रही थी कि डिप्टी चेयरमैन के लिए वो अपना उम्मीदवार नहीं लाने वाली है ऐसे में टीएमसी या एनसीपी से उम्मीदवार आने की चर्चा सामने आ रही थी | हालांकि आखिरी मौके पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतार दिया जिससे बीजेडी, टीआरएस का समर्थन मिलने की रही सही उम्मीद भी जाती रही |

 

 

गौरतलब है कि करीब एक साल पहले हुए राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के रणनीतिकार अहमद पटेल ने राज्यसभा चुनावों में एनडीए की नाक के नीचे से सीट जीत ली थी | इस बार राहुल के पास आंकड़ों के लिहाज से भी बेहतर स्थिति थी साथ ही एनडीए कुनबे की पार्टियां विभाजित भी नज़र आ रही थी | हालांकि राहुल की तरफ से ऐसी कोई पहल नज़र नहीं आई जिससे वो इसी के चलते टीडीपी, वायएसआर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सांसद वोट देने के दौरान अनुपस्थित रहे, और बीजेपी से दूरी बनाते हुए भी एनडीए उम्मीदवार को बीजेडी, अन्ना द्रमुक और टीआरएस का समर्थन भी मिल गया | बताया जा रहा है कि एनडीए के पार्टनर्स को खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने कॉल किया था लेकिन कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने तो आप, टीआरएस, टीडीपी और बीजेडी से बातचीत की लेकिन राहुल खुद इस मामले में चुप्पी बनाए रहे |

 

 

क्या राहुल की निष्क्रियता से कांग्रेस उपसभापति का चुनाव हारी इसके जवाब में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर अब्दुल रहीम कहते हैं कि राहुल सिर्फ कहने भर से महागठबंधन के नेता नहीं मान लिए जाएंगे. वो 2004 को याद करते हुए बताते हैं कि तब अटल सरकार के खिलाफ यूपीए को एकजुट करने का जिम्मा सोनिया गांधी के पास था और उन्होंने खुद फोन कर सबसे बात की और चुनाव में साथ आने का प्रस्ताव रखा था |

 

 

अब्दुल भी मानते हैं कि कांग्रेस की हार तभी तय हो गई थी जब उसने मन करते रहने के बावजूद आखिरी वक़्त पर गठबंधन के साथियों को इग्नोर कर अपना कैंडिडेट उतार दिया | उनके मुताबिक सबसे अच्छी रणनीति तो ये होती कि बीजेडी के सदस्य को महागठबंधन का उम्मीदवार बना दिया जाता, लेकिन इसके लिए राहुल को महागठबंधन के सदस्यों का विश्वास हासिल करना होता जो फिलहाल उनके पास नहीं दिखाई दे रहा है |