क्या हमे प्रकृति के नियम व संतुलन को अपने जीवन से जोड़कर सिख लेनी चाहिए

शिखा गौड़ डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

मुश्किल की घड़ी में प्रकृति के साथ समय या संतुलन की ज्यादा जरुरत महसूस करते हैं। और हमे प्राकृतिक से छेड़छाड़ करना भारी भी पड़ सकता हैं। और जब हम प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। तो मुश्किलों में पड़ जाते हैं। क्योकि की प्राकृतिक में सभी चीजे एक संतुलन बना कर चलती हैं। जिसके लिए एक योजना होती हैं। और क्या हमे प्राकृतिक के संतुलन को अपने जीवन में जोड़कर अच्छी सिख लेनी चाहिए। जैसे की , जिस गेंदनुमा गोल पृथ्वी पर हम रहते हैं। वही पृथ्वी 365 में सूर्ये का चक्कर लगा लेती हैं। इस दौरान वह सूर्ये व सभी ग्रहो से अधिक दुरी बनाये रखती हैं। और ये भी सोचना जरुरी हैं। की कितना व्यवस्थित ठंग से यहां सब चल रहा हैं। और सुबह सूरज निकल आता ,और शाम को चला जाता हैं। और फिर अगले दिन सुबह पूरब से निकलेगा। और खोज करने वाले शास्त्री सैकड़ो साल पहले से यहां अनुमान भी लगा लेते हैं | की , किन तारो और ग्रहो के बीच का केसा होगा संबंध। और फिर धीरे धीरे पता चलता हैं की , प्रकृति अगर एक निश्चित योजना में न होती तो क्या ऐसा होना संभव होता। और इसके व्यवस्थित या संतुलन ठंग से ही सभी का अस्तित्व बना हुआ हैं। और फिर वो चाहे सजीव हो या निर्जीव , हर चीज की अपनी एक अलग प्रकृति होती हैं। क्या कभी ये सोचा की मक्का बोया हो और उगने के समय मक्के के बजाए गेहू निकल आया हो। और फिर सभी की तरह मनुष्य पर भी यही बात लागू होती हैं। और इन सभी नियमो को लेकर प्राकृतिक कभी अपने नियम में बदलाव नहीं करती हैं।

प्रकृति के संग चले

गौर करने वाली बात हैं | की, प्राकृतिक अपना फैसला कभी नहीं बदलती हैं। और साथ ही यहां कभी लापरवाह नहीं होती हैं। और अगर व्यक्ति को जीवन की निश्चिता को समझना हैं। तो प्रकृति पर गौर करे प्रकृति की सभी प्रक्रियाओं पर गौर करे। तो व्यक्तियों के दिमाग को भी प्रकृति के निश्चित ठंग ने ही बनाया हैं। हर एक प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो अपनी पसंद की परिस्थिति को ला सकता हैं | वह तय कर सकता हैं वह किस नाम से जाना जाएगा। साथ ही प्रकृति ने इंसान को ऐसी क्षमता दी हैं। पर इंसान प्राकृतिक के विधान को बदल के ऐसा नहीं कर सकता हैं। और उसे प्रकृति के नियम से ही चलना पड़ता हैं। किसी भी सिद्धांत की मजबूत होने की पुष्टि प्रकृति से कर ले तो पुष्टि गलत नहीं होती हैं। और प्राकृतिक नियमो के साथ खुद को ढाल ले तो यहां हमारी सहायक बन जाती हैं।