शनिदेव की पौराणिक कथा ऐसे करे स्तुति

रजनीश कुमार पाण्डेय
रीडर टाइम्स न्यूज़
नल निषध देश के राजा थे , विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या दमयन्ती उनकी महारानी थी। पुण्यश्लोक महाराज नल सत्य के प्रेमी थे, अतः कलियुग उनसे स्वाभाविक द्वेष करता था। कलिकी कुचाल से राजा नल द्यूतक्रीड़ा में अपना सम्पूर्ण राज्य और ऐश्वर्य हार गये तथा महारानी दमयन्ती के साथ वन-वन भटकने लगे। राजा नल ने अपनी इस दुर्दशा से मुक्ति के लिये शनिदेव से प्रार्थना की। राज्य नष्ट हुए राजा नल को शनिदेव ने स्वप्न में अपने एक प्रार्थना-मन्त्र का उपदेश दिया था। उसी नाम-स्तुतिसे उन्हें पुन: राज्य उपलब्ध हुआ था।
:- सर्वकामप्रद वह स्तुति इस प्रकार है।
क्रोडं नीलाञ्जनप्रख्यं नीलवर्णसमस्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम्॥
नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहारवर्णाञ्जनमेचकाय।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र॥
नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्णदेहाय वै नमः।
शनैश्चराय क्रूराय शुद्धबुद्धिप्रदायिने॥
य एभिर्नामभिः स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्।
मदीयं तु भयं तस्य स्वप्नेऽपि न भविष्यति॥

अर्थात् क्रूर , नील अंजन के समान आभावाले , नीलवर्ण की माला धारण करने वाले , छाया और सूर्य से उत्पन्न शनिदेव को मैं नमस्कार करता हूँ। जिनका धूम्र और नील अंजन के समान वर्ण है , ऐसे अर्क (सूर्य) – पुत्र शनैश्चर के लिये नमस्कार है। इस रहस्य (प्रार्थना) – को सुनकर हे सूर्यपुत्र ! मेरी कामना पूर्ण करने वाले और फल प्रदान करने वाले हों। प्रेतराज के लिये नमस्कार है, कृष्ण वर्ण के शरीर वाले के लिये नमस्कार है; क्रूर, शुद्ध बुद्धि प्रदान करने वाले शनैश्चर के लिये नमस्कार हो। इस स्तुतिको सुनकर शनिदेवने कहा- जो मेरी इन नामों से स्तुति करता है, मैं उससे सन्तुष्ट होता हूँ। उसको मुझसे स्वप्नमें भी भय नहीं होगा।